Book Title: Jin Shatakam Satikam
Author(s): Lalaram Jain
Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याद्वादग्रन्थमाला। मा अस्मदः इबन्तस्य रूपम् । नतं प्रणतम् । एकैः प्रधानैः अच्र्य: पूज्यः एकार्यः, अथवा एकश्चासावय॑श्च एकार्यः तस्य सम्बोधनं हे एकाचँ । शम्भवः तृतीयतीर्थकरभट्टारक: तस्य सम्बोधनं हे शम्भव किमुक्तं भवति-~~यस्य रागादिचेष्टा च पापगा नास्ति यस्य नाश्रीयते वामै: नयश्रीः हे शम्भव सइन: त्वं स्वतेजसा मा आगतं शोभनाचार नतं पायाः एतदुक्तं भवति ॥ १९॥ हे भगवन् ! शंभवनाथ ! हे जगतपूज्य ! हे मुख्य नायक ! हे स्वामिन् ! आपकी चेष्ठा न तो रागादि रूप ही है और न पापरूप है । हे प्रभो ! मिथ्यादृष्ठि लोग आपके अगाध और तत्त्वस्वरूप अभिप्रायोंकी शोभाका आश्रय कभी नहीं ले सकते हे देव ! मैं संसारके दुःखोंसे डरकर आपकी सेवामें उपस्थित हुआ हूं, आपको बार २ नमस्कार करता हूं, मेरा आचार भी निर्दोष और पवित्र है । हे प्रभो ! अपने प्रतापसे मेरी रक्षा कीजिये ॥ १८ ॥ १९॥ अर्द्धभूमः। धाम स्वयममेयात्मा मतयादम्रया श्रिया । स्वया जिन विधेया मे यदनन्तमविभ्रम ॥२०॥ घामेति-धाम अवस्थानं तेजो वा । शोभनः अयः पुण्यं सुखं बा यस्मिन् तत् स्वयम् । अथवा स्वयं आत्मना । अमेयः अपरिमेयः आत्मा ज्ञान स्वभावो वा यस्यासो अमेयात्मा। मतया आभिमतया । भदभ्रया महत्या। श्रिया लक्ष्म्या । स्वयों आत्मीयया । हे जिन परमे १ अदमं पहुलं बहुः इत्यमरः१२ स्वासाताबात्मान - For Private And Personal Use Only

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