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स्थाद्वादग्रन्थमाला । को छिपाकर सर्वथा सत्यस्वरूप अनेकान्तवादको प्रकाश करनेवाले हैं तथा सबसे अधिक उन्नत अर्थात् बड़े हैं । हे प्रभो ! सिद्धोंकी स्तुति करनेसे जिनके मुख पूज्य गिने जाते हैं और जो आपके चरणकमलोंमे सदा नमीभूत रहा करते हैं ऐसे इन्द्र चक्रवर्ती आदि सम्पूर्ण मुख्य मुख्य नायक पुरुष भी मोक्षकलिये विना किसी आपत्तिके आपको नमस्कार करते हैं । यद्यपि यह बात परस्पर विरुद्ध है जो नायक है वह अन्य किसीको क्यों प्रणाम करेगा और जो प्रणाम करेगा वह नायक कैसे हो सकेगा ? परन्तु हे भगवन् आपको सब नमस्कार करते हैं इसलिये आप ही नायक हो सकते हो अन्य कोई नहीं ॥ ५५॥
इति अनन्तनाथस्तुतिः।
गूढद्वितीयचतुर्थान्यतरपादोऽ भ्रमः । त्वमवाध दमेनई मत धर्मप्र गोधन ।
वाधस्वाशमनागो मे धर्म शर्मतमप्रद ॥५६॥ त्वमेति--- त्वं युष्मदो रूपम् । न विद्यते वाधा यस्यासाववाध: तस्य सम्बोधनं हे अवाध । दमेन उत्तमक्षमया ऋद्ध वृद्ध । मत पूजित। धर्मप्र उत्तम क्षमादिना आप्यायकपूरण । गोधन गौर्विणी धनं यस्या सौ गोधनः तस्य सम्बोधनं हे गोधन। वाधस्व विनाशय । अशं दुःस्वम् । अनागः निदोष। मे मम । धर्म पञ्चदशतीर्थकर । शर्म सुखम्। सर्वाणि इमानि शाणि एतेषां मध्ये अतिशयेन इमानि शर्माणि शर्मतमानि सानि प्रददाति यः सः शर्मतमप्रदः तस्य सम्बोधन हे शर्मतमप्रद ।
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