Book Title: Jin Shatakam Satikam
Author(s): Lalaram Jain
Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay

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Page 123
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० परिशिष्ट । गतप्रत्यागतार्द्धः । भासते विभुतास्तोना ना स्तोता भुवि ते सभाः । याःश्रिताः स्तुत गीत्या नु नुत्या गीतस्तुताःश्रिया१० |भा स ते | वि | भु | ता स्तो ना | | याः | थि | ताः स्तु त | गो | त्या नु एवं ८३, ८८, ९५ श्लोकाः । इस कोष्टककी पंक्तियोंको उलटा पढ़नेस उपर्युक्त श्लोकका शेष भाग बन जाता है। गतप्रत्यागतपाद पादाभ्यासयमकाक्षरद्वयविरचितश्लोकः । वीरावारर वारावी वररोरुरुरोरव । वीरावारर वारावी वारिवारिरि वारि वा॥८५॥ इस कोष्टककी प्रत्येक पंक्तिको उल्टा पढ़नेसे पूरा श्लोक बन जाता है। |वी रा वा र वा | रि वा रि एवं ९३, ९.४ श्लोको । For Private And Personal Use Only

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