Book Title: Jin Shatakam Satikam
Author(s): Lalaram Jain
Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३ अर्थभ्रमः। धिया के भिनयेता. यानुपायान्वरानतः। येयापाबातपारा ये श्रियायातानलन्वत ॥३॥ धि या ये घिन ये ता या थान पाया न्वारानातः ये पापा या त पा रा ये श्रिया माता न न न्वत एन,१८,१९.१०,११, २, ३६.४३,१४,५६, ९०, ९२सोका क्षेया। वह क्रियापद द्वितीय पाद मध्य यम कानालुव्यन्जना वर्णस्वर गूढ द्वितीय पादसर्वतोभद्रः। पारावार रवास पाराक्षमाक्षक्षमाक्षरा । वामा नाममनामावारक्षमईईमक्षर॥८॥ पा र वा र र वा राया। वा मा नाम म ना मा वा र सामादी दमक्ष र क्षमाडीचमसार वा मा ना म म ना मा वा बलामालाला मा सारा - - इसकोटक में ऊपर काश्लोक चारों भोरसेपडाजाना है। For Private And Personal Use Only

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