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स्याद्वादग्रन्थमाला ।
नितनुतात् नतान् नः अस्मान् तान्तान् ईतिततान् नो नितनुतात् नूतनैनश्च अत्तु भक्षयतु अन्यानि विशेषणानि भट्टारकस्य विशेषणानि ॥ १.९ ॥ __ हे श्रीवर्द्धमान ! अनेक भव्यजन आपके नानाप्रकारके अनन्त गुणोंकी सदा स्तुति करते रहते हैं । हे देव आप दुःखों के दूर करनेवाले हैं । विनाशरहित हैं । एकांतात्मक असत्यको नाश करनेवाले हैं । सबके पूज्य हैं । आपकी शुभ्रकीर्ति संसारभरमें व्याप्त है । सब कोई आपके श्रीमुखकी स्तुति करता है । इन्द्र गणधरादिकोंके भी आप स्वामी हैं । इन्द्र चक्रवर्ती आदि महापुरुषोंके नायक हैं । अतएव हे भगवन् ! जन्ममरणको दूर करनेवाला केवलज्ञान नामक महाविज्ञान हमें दीजिये । हे प्रभो ! हम नमस्कार करनेवाले लोग संसारके अनेक दुःखोंसे दुःखी हैं । नाना व्याधियोंसे घिरे हैं । हे देव ! आपको नमस्कार करते हैं। हमारा यह दुःख और ये व्याधियां दूर कर दीजिये तथा हमारे ये हालके ( नये ) पाप भी नष्ट कर दीजिये ॥ १०९ ॥
पकवृतम् । वंदारुप्रबलाजवंजवभयप्रध्वंसिगोप्राभव वर्दिष्णो विलसद्गुणार्णव जगन्निर्वाणहेतो शिव । वंदीभूतसमस्तदेव वरद प्राज्ञैकदक्षस्तव वंदे त्वावनतो वरं भवमिदं वयकवंद्याभव ॥११॥
वन्देति-घडरं चक्रं भूमौ फलके वा व्यालिख्य यः पादाः
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