Book Title: Jin Shatakam Satikam
Author(s): Lalaram Jain
Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्याद्वादग्रन्थमाला। हे श्रीवीरनाथ भगवन् ! आपकी दिव्यध्वनिका ऐसा सद्गत माहात्म्य है कि वह आपको नमस्कार करनेवाले जीवोंका जन्ममरणमय संसारसे उत्पन्न होनेवाला प्रचुर भय भी नष्ट कर देती है । हे परमात्मन् ! आप सदा वर्द्धमान हो अर्थात् बढते ही रहते हो । आपका यह गुणसागर कैसा अच्छा सुशोभित हो रहा है । हे देव ! भव्यजीवोंको मोक्ष जानेकेलिये आप प्रधान कारण हो । सम्पूर्ण इन्द्रादिक देव आपले बंदीजन हैं सदा आपका मंगलपाठ पढ़ा करते हैं । आप इष्ट पदार्थको देनेवाले हैं । ज्ञानियोंमें प्रधानज्ञानी हैं । बड़े २ चतुरपुरुष भी आपकी स्तुति किया करते हैं । आप सबसे श्रेष्ठ हैं । जन्म मरण रूप संसारका नाश करनेवाले हैं । अतिशय शोभायमान हैं । यह सम्पूर्ण जगत एक आपको ही नमस्कार करता है । आप संसारसे रहित हैं । हे प्रभो ! बार २ प्रणाम करता हुआ मैं आपकी स्तुति करता हूं ॥ ११ ॥ इष्टपादवलयप्रथमचतुर्थसतमवलयैकाक्षरचक्रवृत्तम् । नष्टाज्ञान मलोन शासनगुरो ननं जनं पानिन नष्टग्लान सुमान पावन रिपूनप्यालुनन् भासन । नत्येकेन रुजोन सजनपते नंदन्ननंतावन नंतऋन् हानविहीनधामनयनो नः स्तात्पुनन् सज्जिन नष्टेति-नष्टं विनष्टं अशानं यस्यासौ नष्टाज्ञानः तस्य सम्बोधन हे नष्टाज्ञान । मलेन कर्मणा ऊनः रहित: मलोनः तस्य सम्बोधनं हे मलोन । शासनस्य दर्शनस्य आशाया वा गुरुः स्वामी शासनगुरुः तस्य For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132