Book Title: Jin Shatakam Satikam
Author(s): Lalaram Jain
Publisher: Syadwad Ratnakar Karyalay

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४ स्याद्वादग्रन्थमाला | भी हैं तथा शीतल भी हैं और पावक (अग्नि) भी हैं । परन्तु यह बात विरुद्ध है जो शीतल है वह पावक नहीं हो सकता । जो पावक है वह शीतल नहीं होसकता । जो घातक है वह प्रसन्नकारक नहीं हो सकता । जो प्रसन्न कारक है वह घातक नहीं सकता | परन्तु आप शीतल अर्थात् भव्यजीवों को आल्हाद करने वाले भी हैं और पावक अर्थात् पवित्र भी हैं तथा पृथिवीमंडल को प्रसन्न करनेवाले भी हैं और पृथिवीमंडल अर्थात् ज्ञानावरणादि कर्मसमूहको घात करनेवाले भी हैं ॥ ४१ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुरजः । काममेत्य जगत्सारं जनाः स्नात महोनिधिम् । विमलात्यन्तगम्भीरं जिनामृतमहोदधिम् ॥४२॥ कामेति — काममत्यर्थ कमनीयं वा । एत्य गत्वा । जगत्सारं त्रिलोकसारम् । जनाः लोकाः । स्नात अज्ञानमलप्रक्षालनं कुरुध्वम् । महसां तेजसां निधिः अवस्थानं यः सः अतस्तं महोनिधिम् । विमल: निर्मल: अत्यन्तः अपर्यन्तः गम्भीरः अगाध : यः सः विमलात्यन्तगम्भीर: अतस्तं विमलात्यन्तगम्भीरम् । जिन एवं अमृतमहोदधिः क्षीरसमुद्रः जिनामृतमहोदधिः अतस्तं जिनामृतमहोदधिम् । एतदुक्तं भवति यतः एवंभूतः शीतलभट्टारकः ततस्तं शीतलं जिनामुत्तमहोनिधिं विमलं अत्यन्त गम्भीरं हे जिना एत्य गत्वा स्नात कामम् ॥ ४२ ॥ हे श्रीशीतलनाथ भगवन् ! आप क्षीरसमुद्र के समान हैं क्षीरसमुद्र भी जगतका सारभूत है आप भी तीनों जगतों में For Private And Personal Use Only

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