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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
"अवज्झा ,अउज्झा, विनीता, कुशला, साकेत, इक्ष्वाकुभूमि और रामापुरी आदि इस नगरी के विभिन्न नाम समय-समय पर प्रचलित हुए। यहां सात कुलकरों एवं ऋषभ, अजित, अभिनन्दन, सुमति और अनन्त इन ५ तीर्थङ्करों तथा महावीर स्वामी के नवें गणधर अचलभ्राता का जन्म हुआ। ऋषभदेव के राज्याभिषेक के समय शक्रेन्द्र ने उन्हें 'विनीतपुरुष' कहा, उसी समय से इस नगरी का एक नाम 'विनीता' भी प्रचलित हुआ। यह नगरी दक्षिणार्द्ध भरत क्षेत्र के पृथ्वी के मध्य १२ योजन लम्बी और ९ योजन चौड़ी परिमाण वाली एवं सरयू नदी के तट पर स्थित है। यहां स्थित आयतन में गोमुख यक्ष तथा चक्रेश्वरी यक्षी की प्रतिमायें विद्यमान हैं। नवाङ्गी वृत्तिकार अभयदेवसूरि की शाखा के देवेन्द्रसरि अयोध्या से आकाश मार्ग द्वारा ४ बिम्ब (जिन प्रतिमायें) रात्रि के समय सेरिसयपुर ले जाने के लिये चले। ३ विम्ब तो उन्होंने वहां पहुंचा दिया, परन्तु चौथी ले जाते समय रात्रि बीत गयी तब उसे पास के 'धारासेणक' नामक ग्राम में छोड़ दिया। चौलुक्य नरेश कुमारपाल ने उस चौथे बिम्ब को सेरिसयपुर लाकर वहीं स्थापित कर दिया। अयोध्या नगरी में इस समय नाभिराजा का मंदिर-महल, पार्श्वनाथवाटिका, सीताकुंड, सहस्रधारा, मत्तगयंदयक्ष का चैत्य, गोपदराई आदि अनेक लौकिक तीर्थ विद्यमान हैं। यहीं घघ्घरदह सरयू नदी के साथ मिलती है और वह स्थान, 'स्वर्गद्वार' के नाम से प्रसिद्ध है।"
जैन मान्यतानुसार अयोध्या आदितीर्थ एवं आदिनगर है। जैन साहित्य में इस नगरी के कई नाम मिलते हैं यथा-विनीता, साकेत, इक्ष्वाकुभूमि, कोशल, अवज्झा, अउज्झा आदि। ये नाम विभिन्न कारणों से रखे गये प्रतीत होते हैं जैसे आवश्यकनियुक्ति के अनुसार यहां के निवासी अत्यन्त विनम्र स्वभाव के थे, अतः इस नगरी का नाम विनीता पड़ा। इसी प्रकार यहां के निवासी अपने-अपने कार्यों में कुशल थे अतः यह नगरी कुशला नाम से प्रसिद्ध हुई । इक्ष्वाकुवंशीय १. मेहता और चन्द्रा -संपा० प्राकृतप्रापरनेम्स, पृ० ३ २. आवश्यकनियुक्ति (दीपिका) पृ० ५६ ३. तत्र विनीताया नगर्या दूरस्थिता जना विनीतावास्तव्यान् जनान्
कलासु विशारदानुपलभ्येवमूचुः-अहो कुशला अमी जनाः, ततः .
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