________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२६५
कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने अपने गुरु देवचन्द्राचार्य से से इसी नगरी में वि०सं० ११५४ के लगभग दीक्षा प्राप्त की थी। इस समय यहां जेतला नामक एक श्रेष्ठी रहता था, उसने यहां एक जिनालय बनवाया । जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल का मन्त्री उदयन इसी नगरी में रहता था, उसने यहाँ उदयनवसही नामक एक जिनालय तथा आलिग नाम के एक अन्य मन्त्री ने यहां आदिनाथ का मंदिर बनवाया। वि० सं० ११६५/ई० सन् ११०८ में मोढवशीय जेलाश्रेष्ठी की पत्नी बहिड़ाबाई ने यहाँ पार्श्वनाथ का एक जिनालय निर्मित कराया, यह बात उक्त जिनालय में उत्कीर्ण वि० सं० १३९२ के एक लेख से ज्ञात होती है। पूर्णिमागच्छीय मुनिरत्नसूरि द्वारा वि० सं० १२५२ / ई० सन् ११९५ के लगभग रचित मुनिसुव्रतस्वामिचरित" की प्रशस्ति में यहां के एक श्रेष्ठी नागिल का उल्लेख है । वि० सं० १२७६/ई० सन् १२२० तक वस्तुपाल धवलक्क में वीरधवल
१. अलंध्यत्वाद् गुरोर्वाचामाचारस्थितया तया ।
दुनयापि सुतः स्नेहादाlत स्वप्नसंस्मृते ॥ ३१ ॥ तमादाय स्तम्भतीर्थे जग्मुः श्रीपार्श्वमन्दिरे । माघे सितचतुर्दश्यां ब्राह्न विष्णये शनेदिने ।। ३२ ॥ 'धिष्ण्ये तथाष्टमे धर्मस्थिते चन्द्र वृषोपगे । लग्ने बृहस्पतौ शत्रस्थितयोः सूर्यभौमयोः ।। ३४ ।।
"हेमचन्द्रसूरिचरितम्' प्रभावकचरित, पृ० १८४
अर्थात् वि० सं० ११५० माघ शुक्ल चतुर्दशी शनिवार को दीक्षा संस्कार हुआ, परन्तु ज्योतिषीय गणनानुसार माघ शुक्ल चतुर्दशी शनिवार वि० सं० ११५४ में पड़ता है; अत: प्रभावकचरित में उल्लिखित उक्त संवत् अशुद्ध प्रतीत होता है । द्रष्टव्य
__ मुसलगांवकर, वि० भा०-आचार्यहेमचन्द्र, पृ० १७ २. शाह, अम्बालाल पी०-पूर्वोक्त, पृ० १७ ३. वही, पृ० १७ ४. मुनि जिनविजय-संपा.–प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, ले वाङ्क ४४९ ५. जिनरत्नकोश, पृ० ३१२ ६. शाह, पूर्वोक्त, पृ० ११७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org