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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
अध्ययन
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जैसा कि ग्रन्थकार का स्पष्ट कथन है कि उन्होंने इस तीर्थ के सम्बन्ध में जो विवरण दिये हैं वे ब्राह्मणीय तथा जैन दोनों परम्पराओं पर आधारित हैं। प्रथम तीन युगों कृतयुग, त्रेता और द्वापर में इस तीर्थ की स्थिति का विवरण ब्राह्मणीय परम्परा पर आधारित प्रतीत होता है और इसमें ग्रन्थकार ने यथास्थान अपने अनुकूल परिवर्तन भी किया है। कलिकाल में इस तीर्थ का जीर्णोद्धार शान्तिसूरि ने कराया, वे ऐसा उल्लेख करते हैं; परन्तु ये शान्तिसूरि किस गच्छ के थे? उनका समय क्या था? इन बातों का ग्रन्थकार ने कोई उल्लेख नहीं किया है। जहाँ तक कल्याणकटक ( कल्याणी ) के राजा परमर्दी द्वारा २४ ग्राम देवालय को प्रदान करने का प्रश्न है, यह बात असंभव तो नहीं लगती; हो सकता है कि कल्याणी के चौलक्यवंशीय किसी राजा या उसके किसी उच्चाधिकारी अथवा सामन्त ने यह दान दिया हो। त्रयम्बक देवाधिष्ठित महादुर्ग ब्रह्मगिरि के महल्लय क्षत्रियजातीय वाइयो नामक एक डाक ने जिस प्रासाद को गिरा दिया ऐसा--जिनप्रभ का कथन है। त्रयम्बक (त्रयम्बकेश्वर ) और ब्रह्मगिरि नासिक में ही स्थित हैं। ब्रह्मगिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है और वहीं त्रयम्बकेश्वर तीर्थ है । ये ब्राह्मणीय परम्परा में प्रसिद्ध तीर्थ माने जाते हैं । जहाँ तक डाकू द्वारा जिनप्रसाद गिराने की घटना का प्रश्न है,सम्भव है कि जैनों के प्रति विद्वेष के कारण यह घटना घटित हुई हो। ऐसा प्रतीत होता है कि एक प्रसिद्ध ब्राह्मणीय तीर्थस्थान पर जैनों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिये ब्राह्मणों की ओर से उनके जिनालय को क्षतिग्रस्त कराया गया होगा। परन्तु जैनों की स्थिति भी यहाँ दृढ़ प्रतीत होती है, क्योंकि आगे स्वयं जिनप्रभ यह उल्लेख करते हैं कि पल्लीवालवंशीय ईश्वर नामक एक श्रावक के पुत्र कुमारसिंह ने उस
१. नासिक में स्थित तीर्थ, जहां से गोदावरी निकलती है।
नादरीयपुराण २।७३। १-१५२; स्कन्दपुराण ४।६।२२ । २. एक पर्वत जहां से गोदावरी निकलती है।
ब्रह्मपुराण-७४।२५-२६,८४। २ । ३. धर्मशास्त्र का इतिहास, ( हिन्दी अनुवाद ), खंड ३, पृ० १४४१
तथा १४६१ ।
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