Book Title: Jain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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सहायक ग्रन्थसूची बृहत्कल्प ( कप्प ), संपा० और हिन्दी अनुवादक--अमोलक ऋषि,
हैदराबाद, वीर सम्वत् २४४५; --- भाष्य ( संघदासगणि) -- टीका ( मलयगिरि तथा क्षेमगिरि ), संपा० मुनि पुण्य
विजय. भाग १६, भावनगर, १९३३-३८ ई० । मरणसमाधि ( मरणसमाहि ) आगमोदय समिति बम्बई. १९२७ ई० । राजप्रश्नीय ( रायपसेणइ ) संपा० - मुनि कन्हैयालाल जी; भाग १-२,
हिन्दी अनुवादक, घासीलाल जी, राजकोट, ( सौराष्ट्र)
१९६५ ई०। विपाकयूत्र ( वियागसुय) मूल और हिन्दी अनुवाद, संपा० अनु०
मनि आनन्द सागर, कोटा (राजपूताना), १९३५ ई०;
-- टीका (अभयदेव), बड़ौदा, वि०सं० १९२२; व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती ) मूल और वत्ति (अभयदेव) सहित, द्वितीय
संस्करण, रतलाम, १९३७ ई०। समवायांग - संपा० मुनि मधुकर, व्यावर, १९८२ ई०;
-टीका ( अभयदेव), अहमदाबाद, १९३८ ई०; सूत्रकृताङ्ग ( सूयगडं ), संपा० मुनि मधुकर, व्यावर, १९८२ ई०;
-- नियुक्ति, ( भद्रबाहु) - चूर्णी ( जिनदासगणि ), रतलाम, १९४१ ई०; - अंग्रेजी अनुवाद, हर्मन जैकोबी, सैकेड बुक्स ऑफ द
ईस्ट, जिल्द ४५, द्वि०सं० दिल्ली, १९६४ ई० । स्थानाङ्ग ( ठाणांग ), संपा० मुनि मधुकर, व्यावर, १९८१ ई०; ---- टीका (अभयदेव), अहमदाबाद, १९३७ ई० ।
अंग बाह्य जैन साहित्य । अभिधानचिन्तामणि ( हेमचन्द्र ), संपा०-हरगोविन्द दास बेचरदास,
भाग १-२, भावनगर, वीर सं० २४४१-६ । अभिधानराजे द्रकोश ( विजयराजेन्द्रसूरि ), रतलाम, १९१३-३४ ई० । अष्टोत्तरीतीर्थमाला ( महेन्द्रसूरि ), विधिपक्षीय पंचप्रतिक्रमणसूत्राणि,
वि० सं० १९८४ ।
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