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मैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२८३ माधवराज द्वारा निर्मित पद्मावती का मंदिर, जिसका जिनप्रभ ने उल्लेख किया है, आज विद्यमान नहीं है। परन्तु उसके वंशज मेळरस के समय "अनमकोण्ड' की पहाड़ी पर ही निर्मित कदलालय ( पद्मावती ) देवी का मन्दिर आज अवश्य विद्यमान है, जो माधवराज ( माधववर्मा ) के गौरव का आज भी स्मरण दिला रहा है । __काकतीय नरेश वैष्णव धर्मावलम्बी थे, अतः इसी धर्म को उन्होंने प्रश्रय दिया। यद्यपि जैन धर्म का भी यहाँ अस्तित्व था, जैसा कि उक्त लेख से स्पष्ट होता है । परन्तु वैष्णव और शैवधर्मों से अपेक्षाकृत उसकी स्थिति दुर्बल थी । गणपतिदेव (ई० सन् ११९९-१२६२) के शासनकाल में तो टिक्कन सोमैय्य, जो तेलगू महाभारत का रचयिता माना जाता है, ने जैनों को एक शास्त्रार्थ में बुरी तरह परास्त कर दिया गया था। इस घटना से जैनों की प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि आन्ध्रप्रदेश के अन्य स्थानों की भाँति १२-१३ वीं शती में अनमकोण्ड में भी जैन धर्म अपने प्रतिद्वन्दियों के विरोध के कारण विषम स्थिति से गुजर रहा था।
२. कुल्पाकमाणिक्यदेवकल्प कुल्पाक जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है, जो वर्तमान आन्ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से ४५ मील उत्तर-पूर्व में स्थित है। जिनप्रभ सूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस तीर्थ पर एक स्वतन्त्र कल्प लिखा है, जिसमें उन्होंने इसकी उत्पत्ति एवं माणिक्यस्वामी की प्रतिमा का पौराणिक इतिहास दिया है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
"पूर्व काल में भरत चक्रवर्ती ने अष्टापद पर्वत पर जिन ऋषभदेव की माणिक्य की एक प्रतिमा निर्मित करायी, जो माणिक्यदेव के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस प्रतिमा को सर्वप्रथम विद्याधरों, फिर इन्द्र और उसके पश्चात रावण ने अपने-अपने यहाँ लाकर उसकी
१. जोहरापुरकर, विद्याधर- संपा० जैन शिलालेख संग्रह, भाग ४, पृ०.
१४५ । २. सालेटोर, बी०ए०-मिडुवल जैनिज्म, पृ० २७२ ।
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