Book Title: Jain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 342
________________ केरल जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, इस प्रान्त के केवल एक तीर्थ का उल्लेख है और वह है 'मलयगिरि'। १. मलयगिरि कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रह कल्प के अन्तर्गत इस पर्वत का भी उल्लेख है और कहा गया है कि यहाँ श्रेयांसनाथ और पार्श्वनाथ के जिनालय विद्यमान हैं। ___ मलयगिरि को पूर्वी और पश्चिमीघाट के मध्य ट्रावनकोर की पहाड़ियों से समीकृत किया जाता है ।' जैन पौराणिक साहित्य में इस स्थान का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु जैन तीर्थ के रूप में जिनप्रभ सूरि के पूर्ववर्ती किसी अन्य जैन ग्रन्थकार ने इसका उल्लेख किया हो, ऐसा अभी तक देखने में नहीं आया है । पौराणिक कथाओं में उल्लिखित होने के कारण इस पर्वत की पवित्रता और महत्त्व तो निर्विवाद है, अतः ऐसी स्थिति में वहाँ जिनालयों के होने की जिनप्रभ की मान्यता को पूर्णतः अस्वीकार तो नहीं किया जा सकता है, हो सकता है उनके समय में यहां उक्त तीर्थङ्करों के जिनालय विद्यमान रहे हों किन्तु उनका आज कोई भी अवशेष नहीं मिलता। १. सरकार, दिनेशचन्द्र ---स्टडीज इन ज्योग्राफी ऑफ ऐन्शेंट एण्ड मिडुवल इण्डिया, पृ० ११५ । २. पउमचरिउ (विमल-ई० सन् ६ठी शती) ३३।१४१, आदिपुराण (रचनाकार-जिनसेन-ई० सन् ९वीं शती का उत्तरार्द्ध) २९।८८; ३६।२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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