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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२. दक्षिणापथ गोम्मटेश्वरबाहुबलि जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत दक्षिणापथ के गोम्मटदेव का भी उल्लेख किया है । __ वर्तमान में कर्णाटक प्रदेश के ३ स्थानों-श्रवणवेलगोला, कारकल और वेणूरु में गोम्मट प्रतिमायें हैं । श्रवणवेलगोला स्थित गोम्मट प्रतिमा को ई० सन् ९८३ में गंग नरेश के सेनापति चामुण्ड राय द्वारा निर्मित कराया गया। शेष दो प्रतिमायें ई० सन् १४३२ और ई० सन् १५०४ में स्थापित करायी गयीं।' चूंकि जिनप्रभसूरि के समय तक केवल श्रवणबेलगोला के गोम्मटदेव ही अस्तित्व में आये थे, अतः यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि जिनप्रभ ने दक्षिणापथ के जिस गोम्मटदेव का उल्लेख किया है वह श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर बाहुबलि ही हैं।
श्रवणबेलगोला दिगम्बर जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे जैनबद्री, जैन काशी और गोम्मटतीर्थ भी कहा जाता है । यहाँ स्थित गोम्मटदेव की प्रतिमा ५७ फुट ऊँची है।३ दिगम्बर परम्परानुसार श्रुतकेवली भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहीं आकर तपस्या की
और सल्लेखना विधि से यहीं पर शरीर का भी त्याग किया। श्रवणबेलगोला और उसके समीपवर्ती ग्रामों से लगभग ५०० शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जो ई० सन् की छठी शती से लेकर ई० सन् की १८वीं शती तक के हैं। इसप्रकार स्पष्ट है कि प्राचीन काल से ही यह स्थान एक प्रसिद्ध दिगम्बर तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित रहा है।
३. शंखजिनालय जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत शंख जिनालय का भी उल्लेख किया है और यहाँ नेमिनाथ के मंदिर होने की बात कही है। १. शर्मा, एस०आर०-जैनिज्म एण्ड कर्णाटक कल्चर, पृ० १०३ । २. वही, पृ० १०३ । ३. जैन, जगदीश चन्द-भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ६७ । ४. वही, पृ० ६७ । ५. जैन, हीरालाल-संपा० जैन शिलालेख संग्रह, प्रथमभाग में यहां से
प्राप्त प्रायः सभी लेख प्रकाशित हैं । श्रवणवेलगोला के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण के लिये द्रष्टव्य-उक्त ग्रन्थ की प्रस्तावना ।
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