________________
-२७०
दक्षिण भारत के जैन तीर्थ ३. नासिक्यपुरकल्प
नासिक भारतवर्ष की एक प्रमुख नगरी के रूप में प्राचीन काल से ही प्रतिष्ठित रही है। यह ब्राह्मणीय धर्मावलम्वियों का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। मध्ययुग में यह स्थान जैन तीर्थ के रूप में भी प्रसिद्ध रहा। जिनप्रभसूरि ने इस नगरी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ब्राह्मणीय तथा अन्य परम्पराओं में प्रचलित पौराणिक कथाओं तथा एक जैन तीर्थ के रूप में इसका यथाश्रुत उल्लेख किया है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
"कृतयुग में विष्णु ने इस नगरी को बसाया और वहाँ चन्द्रप्रभस्वामी का जिनालय बनवाया। इस युग में इस नगरी का नाम “पद्मपुर' प्रसिद्ध हुआ। त्रेतायुग में राम, लक्ष्मण और सीता ने अपना वनवास-काल यहीं व्यतीत किया। राम से प्रणय-याचना करने के कारण लक्ष्मण ने रावण की बहन सूर्पनखा की नासिकाछेदन कर दी, इसीलिये इस नगरी का नाम "नासिक्यपुर" पड़ा। बाद में लंका-विजय के पश्चात् लौटते समय राम ने यहाँ स्थित चन्द्रप्रभस्वामी के जिनालय का जीर्णोद्धार कराया। मिथिलानरेश जनक ने यहाँ १० यज्ञ किये, इसलिये इसका एक नाम “जनकस्थान"भी प्रचलित हुआ। इसीप्रकार एक अन्य घटना विशेष से इसका एक नाम "जगथाण" भी पड़ गया। द्वापरयुग में कुन्ती ने यहाँ के चन्द्रप्रभ जिनालय को जीर्ण देखकर उसे पुन'निर्मित कराया, जिसके कारण इस नगरी का नाम "कुन्तीविहार" पड़ा। द्वारिकादाह के पश्चात् यादववंश के बचे हुए लोग यहाँ आये और उन्होंने चन्द्रप्रभ के जिनालय का पुनर्निर्माण कराया। इसप्रकार तीनों युगों में इस तीर्थ का अनेक बार जीर्णोद्धार हुआ। वर्तमान कलिकाल में शान्तिसूरि ने इस तीर्थ का उद्धार कराया। कल्याणकटक के राजा परमर्दी ने इस जिनालय को ब्यय हेतु २४ ग्राम प्रदान किये । बहुत काल बीतने पर त्रयम्बक देवाधिष्ठित महादुर्ग ब्रह्मगिरि स्थित महल्लय क्षत्रिय ने, जिसका नाम वाइओ था; जिनप्रासाद को गिरा दिया। तत्पश्चात् पल्लीवालवंशीय किसी ईश्वर नामक व्यक्ति के पुत्र कुमारसिंह ने उसे पुनर्निर्मित कराया। चारों दिशाओं से यहाँ संघादि आते हैं और पूजा अर्चना करते है।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org