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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
ने वस्तुपाल - तेजपाल की इस यात्रा का उल्लेख नहीं किया है, जो आश्चर्यजनक है ।
स्तम्भनक को गुजरात राज्य के खेड़ा जिलान्तर्गत आनंद ताल्लुका में स्थित "थामणा" नामक स्थान से समीकृत किया जाता है । आज यहाँ कोई जिनालय विद्यमान नहीं है ।"
२३. स्तम्भतीर्थ
कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प" के अन्तर्गत स्तम्भतीर्थ का भी उल्लेख है और यहां नेमिनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है ।
स्तम्भतीर्थ ( वर्तमान कैम्बे ) पश्चिमी भारतवर्ष की एक प्रमुख नगरी और पत्तन के रूप में पूर्व मध्यकाल से ही प्रसिद्ध रही है । इसके कई नाम मिलते हैं, यथा खम्भायत, खय्यात, त्रम्बवती, ताम्रलिप्ति, महीनगर, भोगावती, पापवती आदि। इनमें खंभात और स्तम्भतीर्थ नाम ज्यादा प्रचलित हैं । स्तम्भतीर्थ का सर्वप्रथम उल्लेख राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द 'तृतीय' ( ई० सन् ७९३ - ८१४ ) के 'कावीदानशासन' में प्राप्त होता है । गुजरात का दक्षिणी भाग जिसके अन्तर्गत भड़ौच पत्तन स्थित था, राष्ट्रकूटों के अधिकार में था । स्तम्भतीर्थं (खम्भात) पर इनके प्रतिद्वन्दी प्रतिहारों का अधिकार था। राष्ट्रकूटों की प्रतिद्वन्दिता में ही प्रतिहारों ने स्तम्भतीर्थ का विकास किया । सोलङ्कीयुग में यह भारतवर्ष के सर्वप्रमुख पतन के रूप में प्रतिष्ठित हो गया । " व्यापारिक दृष्टि के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी इस नगरी का बड़ा महत्त्व रहा । इस युग ( सोलङ्की युग ) में यह नगरी शैव, वैष्णव और जैन धर्मों के प्रमुख केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित रही 14 १. परीख और शास्त्री - पूर्वोक्त, भाग १, पृ० ३८७
२. वही, पृ० ३८८ |
३. अल्लेकर, ए०एस० - " ए हिस्ट्री ऑफ इम्पार्टेन्ट ऐन्शेन्ट टाउन्स एण्ड सिटीज इन गुजरात एण्ड काठियावाड़" "इंडियन ऐन्टीक्वेरी ", ( ई० सन् १९२५ ) सेप्लीमेन्ट, पृ० ४७ ।
४. परीख और शास्त्री - पूर्वोक्त, पृ० ३९० ५. वही
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