Book Title: Jain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 317
________________ २६६ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ के दण्डनायक के रूप में नियुक्त हो चुके थे ।' वस्तुपाल - तेजपाल ने स्तम्भतीर्थ का बहमुखी विकास किया। स्तम्भतीर्थ का शासनतंत्र सुधारने के पश्चात् वि० सं० १२७९ ई० सन् १२२३ में वस्तुपाल ने अपने पुत्र जैत्रसिंह को स्तम्भतीर्थ का राज्यपाल नियुक्त किया । जैत्रसिंह के आग्रह पर नागेन्द्रगच्छीय आचार्य विजयसिंहसूरि ने हम्मीरमदमर्दन' नामक नाटक तथा बालचन्द्रसूरि ने वि० सं १२९६ में वसन्तविलासमहाकाव्य की रचना की। ____ इस युग में यहाँ ताड़पत्रों पर अनेक पुस्तकों की प्रशस्तियाँ लिखी गयीं।५ वि० सं० १५२७/ई० सन् १४७१ में यहां श्रेष्ठी घोघा ने एक जिनालय का निर्माण कराया। उक्त जिनालय आज विद्यमान नहीं है। परवर्ती काल के अनेक जैन ग्रन्थकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं में यहां के जिनालयों का उल्लेख किया है। भारतवर्ष के जिन ४ स्थानों पर विशाल जैन ग्रन्थ भंडार विद्यमान हैं, उनमें स्तम्भतीर्थ ( खंभात ) भी एक है । यहां के प्रमुख ज्ञानभंडार हैं: १- नीतिविजयज्ञानभंडार, २- श्रीशांतिनाथज्ञानभंडार, ३- सागरगच्छ के उपाश्रय का ज्ञानभंडार, ४- विजयनेमिसूरि का ज्ञानभंडार तथा ५- जिरालापाड़ा में स्थित ज्ञानभंडार। इसके अलावा यहां कई उपाश्रयों में भी छोटे-छोटे ज्ञानभंडार हैं। १. सांडेसरा, भोगीलाल-महामात्यवस्तुपाल का साहित्यमंडल, पृ० ३९. २. वही, पृ० ४१ ३. मुनि पुण्यविजय--संपा०-कैटलाग ऑफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्कृप्ट्स-जैसलमेरकलेक्शन, पृ० १५४ ४. जिनरत्नकोश, पृ० ३४४ ५. द्रष्टव्य, मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित—जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह ६. सोमपुरा, के ०एफ०--पूर्वोक्त, पृ० २१६ ७. अमीन, जे०पी०-खंभातनुजैनमूर्तिविधान, पृ० ४ ८. तीन अन्य प्रमुख जैन ग्रन्थ भण्डार पाटन, जैसलमेर और पूना (महाराष्ट्र ) में हैं ९. अमीन, पूर्वोक्त, पृ० ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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