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पश्चिम भारत के जैन तीथे जैन प्रबन्धग्रन्थों में भी इस नगरी का उल्लेख है । प्रभावकचरित' (वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८) में यहाँ के निवासी सर्वदेव नामक एक ब्राह्मण, का जो चारों वेदों में पारंगत था, उल्लेख है।
प्रबंधचिन्तामणि ( वि० सं० १३६६/ई० सन् १३०९) और पुरातनप्रबंधसंग्रह ( ई० सन् १४वीं-१५वीं शती) के अनुसार धारा के परमार नरेश मुज के पुत्र सिंहल ने गुर्जरदेश में आकर काशहृद में अपनी छावनी डाली थी। ___यहाँ आदिनाथ का एक प्रसिद्ध जिनालय था। अपनी तीर्थयात्रा के समय महामात्य वस्तुपाल और तेजपाल यहाँ आये थे। वस्तुपाल ने यहाँ एक अम्बालय का निर्माण कराया और तेजपाल ने आदिनाथ के जिनालय का जीर्णोद्धार कराया। इस जिनालय का गढ़मण्डप और देवकुलिका ई० सन् १०३१ में निर्मित हो चुकी थी, परन्तु रंगमंडप में १३वीं शताब्दी में हुए जीर्णोद्धार के स्पष्ट प्रमाण यहाँ उपलब्ध हैं।
प्राग्वाटवंशीय श्रेष्ठी गुणधर द्वारा वि० सं० १३३० में लिखायी १. काश्यपरोपितनगरे कासहृदाख्ये समस्ति भूदेवः । श्रीसर्वदेवनामा वेदचतुष्कस्य पारगतः ॥ ९० ।।
विजयसिंहसूरिचरितम्' प्रभावकचरित, पृ० ४४ २. स सीन्धलो गूर्जरदेशे समागत्य काशहृदनगरसन्निधौ, निजां पल्ली निवेश्य दीपोत्सवे रात्रौ मृगयां कर्तुं प्रयातः । ___ "मुजराजप्रबन्ध" प्रबन्धचिन्तामणि
सं• दुर्गाशंकरकेशवरामशास्त्री ( बम्बई, १९३२ ई० ) पृ० ३१-३२ ३. श्रीपरमावश्यश्रीहर्षभूपो राज शरवणमध्ये जातमात्रं बालं प्राप्य देव्यै०
स मुञ्ज इति नाम । ततः (राज्ञः) सीन्धलः सुतः मुजे राज्यं रुद्रादित्यो महामात्यं । उत्कटत्वात्सीन्धलोः निष्काशितः । गुर्जरदेशे कासद्रासन्ने निजपल्ली कृत्योवास । "प्रबन्धचिन्तामणिगुम्फितकतिपयप्रबन्धसंक्षेप" पुरातनप्रबन्धसंग्रह,
पृ० १२८ ४. ढाकी, मधुसूदन तथा शास्त्री, प्रभाशंकर -- "वस्तुपालतेजपालनी कीति
नात्मकप्रवृत्तियो" स्वाध्याय, खंड ४, अंक ३, पृ० ३०५-३२० ।
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