Book Title: Jain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 278
________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २२७ घटना का उल्लेख फरिस्ता आदि मुस्लिम इतिहासकारों तथा जिनपाल कृत खरतरगच्छपदावली एवं जयसिंहसरि विरचित हम्मीरमदमर्दन' आदि भारतीय ग्रन्थों में हुआ है। विजयी होने के पश्चात् ऐबक ने अणहिलवाड़ को लूटा एवं मन्दिरों-चैत्यों को क्षति पहँचाई। इस प्रकार स्पष्ट है कि जिनप्रभसरि ने भीम 'द्वितीय' के समय गुजरात पर आक्रमण करने वाले जिस मुस्लिम आक्रमणकारी का उल्लेख किया है वह कुतुबुद्दीन ऐबक ही था। अणहिलवाड़ पर मुसलमानों का अधिकार अल्पकालिक सिद्ध हुआ, क्योंकि भीम 'द्वितीय' ने ई० सन् १२०१ तक पुनः वहाँ अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। यह बात वि० सं० १२५८ ई० सन् १२०१ में लिखी गयी षड्शोतिप्रकरणवृत्ति की प्रतिलेखन प्रशस्ति से ज्ञात होती है। भीम 'द्वितीय' के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसने आबू सहित समस्त दक्षिण राजपूताने पर भी अपना प्रभाव पुनः स्थापित कर लिया था । ऐसी परिस्थिति में जिनप्रभसूरि ने अणहिलवाड़ स्थित १. इलियट और डाउसन-भारत का इतिहास (हिन्दी अनुवाद ), द्वितीय खंड, पृ० १६६-१६७ २. “पत्तनभङ्गानन्तरं घाटीग्रामे चतुर्मासी कृता ।" मुनि जिनविजय-संपा० खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, पृ० ४४ । ३. "सुगृहीतनामधेयानां मतिभिरतिशयेन दीप्यते सहजदीप्तोऽति प्रभुप्रतापः । तथाहि स्वदेशसदेशमभिसरत्सु स्वेच्छया म्लेच्छराजसैन्येषु तातकारितया प्रयाणकस्य भृशमदीर्घकारितया तया निरतिशयामाशामाशङ्का । च प्रपञ्चयन्तः स्वयममिलन्नमी मरुदेशनरेशाः श्रीवीरधवलस्य । दलाल, चिमनलाल डाह्याभाई-संपा० हम्मीरमदमर्दनम् ( बडोदरा-१९२० ई० ) २८, पृ० ११ ४. संवत् १२५८ वर्षे पौष वदि ५ रवावद्येह श्रीमदणहिलपाटके ( समस्त राजा ) वलीविराजित महाराजाधिराज श्रीभीमदेवराज्ये षडशीतकवृत्तिः । "षडशीतिप्रकरणवृत्ति" मुनि जिनविजय-संपा०-जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, पृ० ११३ । ५, चौधरी, गुलाबचन्द -पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ नार्दन इंडिया फ्राम जैन सोर्सेज, पृ० २९१-२९२ मजुमदार, ए० के०-चौलुक्याज ऑफ गुजरात, पृ० १४२-१४४ पाठक, विशुद्धानन्द -- उत्तरभारत का राजनैतिक इतिहास, पृ. ५४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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