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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
दो अन्य प्रतिमायें भी किसी अन्य स्थान से लाकर स्थापित की गयीं। इन पर वि० सं० १३०४ और वि० सं० १३०५ के लेख उत्कीर्ण हैं । ये मतियाँ अजितनाथ की हैं।' कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित दो अन्य प्रतिमायें भी जो वि० सं० १३५४ के लेख से युक्त हैं, किसी अन्य स्थान से लाकर यहाँ रखी गयी हैं । २ ।
दिगम्बर परम्परा में भी इस तीर्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दिगम्बर मान्यतानुसार तारापूरनगर के निकट वरदत्त, वराङ्ग तथा सागरदत्त और साढ़े तीन करोड मुनियों ने यहाँ से मुक्ति प्राप्त की। आज यहाँ दिगम्बरों के दो मंदिर हैं, एक मंदिर वि० सं० १५११ का है और दूसरा वि० सं० १९२३ का है। वहाँ इससे पहले का दिगम्बरों का कोई अवशेष आज विद्यमान नहीं हैं।
कुमारपाल द्वारा यहाँ निर्मित-अजितनाथ का विशाल जिनालय आज श्वेताम्बरों के स्वामित्व में है। इसका समय-समय पर जीर्णोद्धार कराया गया है। यह बात उक्त विवरणों से स्पष्ट होती है। तारङ्गा उत्तर गुजरात के मेहसाणा जिले में अवस्थित है। १. शाह, अम्बालाल पी० -- पूर्वोक्त, १४९ । २. वही, पृ० १४९ । ३. वरदत्तो य वरंगो सायरदत्तो य तारवरणयरे । आहुट्ठयकोडीओ णिव्वाणगया णमो तेसि ।। ४ ।।
निर्वाणकाण्ड ( रचनाकाल ई० सन् १२-१३वीं शती) जोहरापुरकर, विद्याधर--संपा० तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० ३६, १४६ ताराउरि बंदउँ मुणि वरंगु। आहुट्ठ कोडि किउ सिद्धिसंगु । १० ।।
तीर्थवन्दना, रचनाकार-उदयकीति-ई० सन् १२ वी १३ शती जोहरापुरकर-पूर्वोक्त, पृ० ४०, १४६ तारापुर वरदत्त आदि अउठ कोडि मुनि गयाए ॥ ६ ॥
तीर्थवन्दना, रचनाकार-मेघराज-ई० १६वीं शती
जोहरापुरकर, पूर्वोक्त, पृ० ५२, १४६ ४. प्रेमी, नाथूराम-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १९१
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