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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ के अन्तर्गत रामसैन का भी उल्लेख किया है और यहाँ महावीर स्वामी के मन्दिर होने की बात कही है।
रामसन प्राचीनकाल में रामसैन्य के नाम से प्रसिद्ध था। यह स्थान गुजरात राज्य के बनासकांठा जिलान्तर्गत 'डीसा' नामक स्थान से २५ किमी० उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यहाँ ग्राम के मध्य में ऋषभदेव का एक प्राचीन और भव्य जिनालय विद्यमान है। तपागच्छीय सोमसुन्दरसूरि के शिष्य मुनिसुन्दरसूरि ने स्वरचित गर्वावलो ( वि० सं० १४६७-६८। ई० सन् १४१०-११) में ऋषभदेव के इस जिनालय का उल्लेख किया है और वि० सं० १०१० में इस जिनालय में चन्द्रप्रभ की प्रतिमा स्थापित किये जाने की बात कही है। ग्राम से एक मील दूर धातु की एक प्रतिमा का परिकर प्राप्त हुआ है, जिस पर एक लेख भी उत्कीर्ण है। उस लेख से पता चलता है कि यहाँ के राजा रघुसेन ने वि० सं० १०८५ में ऋषभदेव की प्रतिमा बनवाकर इस जिनालय में स्थापित करायी। यद्यपि जिनप्रभसूरि ने यहाँ महावीर स्वामी के जिनालय होने की बात कही है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि यह जिनालय प्राचीनकाल से ही आदिनाथ को समर्पित रहा है और उसमें समय-समय पर विभिन्न तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ भी स्थापित की जाती रहीं। अठारहवीं शती के जैन ग्रन्थकार शीलविजय ने भी अपनी तीर्थमाला ( रचनाकाल सं० १७४६) में इस तीर्थ का उल्लेख किया है। ___ वर्तमान में इस जिनालय में पाषाणनिर्मित ८ और धातुनिर्मित ६ प्रतिमायें हैं । इनमें से पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा पर वि० सं० १२८९/ ई० सन् १२३२ का एक लेख भी उत्कीर्ण है।
१. नृपाद् दशाग्र शरदां सहस्र १०१० यो रामसैन्याह्य पुरे चकार ।
नाभेयचैत्येऽष्टमतीर्थबिम्बप्रतिष्ठा विधिवत् सदय॑ः ।। ५७ ।।
गुर्वावली, प्रका० यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी-वीर सं० २४३७ २. त्रिपुटी महाराज-जैन तीर्थोनो इतिहास ( प्रका० श्रीचारित्रस्मारक
ग्रन्थमाला, अहमदाबाद, ई० सन् १९४९ ) पृ० २२६-२२७ । ३. विजयधर्मसूरि-संपा० प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, पृ० १०५ । ४. शाह, अम्बालाल पी०-जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, पृ. १११-११२
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