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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२५१ तथा प्रबंधकोश'के अनुसार यहाँ वायुदेव का मंदिर था। स्कंदपुराण'धर्मारण्यखण्ड' ( १३वीं-१४वीं शती ) में भी यहाँ स्थित वायुदेव के मंदिर की चर्चा है। प्रबंधकोश के अनुसार 'वायड' अणहिलपुरपत्तन के अन्तर्गत एक 'महास्थान' था। यहाँ स्थित महावीर जिनालय का भी राजशेखर ने उल्लेख किया है। पुरातनप्रबंधसंग्रह' के अनुसार चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल के मन्त्री उदयन की प्रथम पत्नी के मृत्योपरान्त उसके पुत्र वाहड़ ( बागभट्ट ) ने वायड में अपने पिता की दूसरी शादी निश्चित की। "वायडमहास्थान" से ही वायडगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । जिनदत्तसूरि इस गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य थे। इन्होंने "विवेकविलास' नामक ग्रन्थ की रचना की । वि० सं० १२६५ में यहाँ ( वायड में ) इनका आगमन हुआ, इस अवसर पर उन्होंने अनेक लोगों को जैन धर्म में दीक्षित किया। वे वस्तुपाल के साथ शत्रुजय की यात्रा पर भी गये। वायड ब्राह्मणों तथा वायड वाणिकों की यहीं से उत्पत्ति हुई मानी जाती है । वस्तुपाल ने यहाँ स्थित महावीर जिनालय का जीर्णोद्धार कराया। यह कार्य ई०सन्
१. गूर्जरधरायां वायुदेवतास्थापितं वायट नाम महास्थानम् ।
"जीवदेवसूरिप्रबन्ध''-प्रबन्धकोश, पृ० ७ २. स्कन्दपुराण-धर्मारण्यखण्ड ३।२।२।१ ३. श्रीअणहिल्लपत्तनासन्नं वायट नाम महास्थानमास्ते ।
"अमरचन्द्रकविप्रबन्ध"-प्रबन्धकोश, पृ० ६१ । ४. स निम्बो वायटे श्रीमहावीरप्रासादमचीकरत् ।
___'जीवदेवसूरिचरितम्'-प्रबन्धकोश, पृ० ८ ५. वायडपुरे जीवितस्वामिनं श्रीमुनिसुव्रतमपरं श्रीवीरं नन्तुं चलत ।
“मन्त्रिउदयनप्रबन्ध'--पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० ३२ । ६. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास,
पृ० ३४१ । ७. वही ८. वही
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