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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ इसी प्रकार कुमारपाल द्वारा नियुक्त सौराष्ट्र के दण्डनायक द्वारा यहाँ पर्वत पर सीढ़ियाँ बनवाने का ग्रन्थकार ने जो विवरण दिया है, उसका समर्थन भी यहाँ उत्कीर्ण शिलालेख से होता है, परन्तु शिलालेख में उक्त कार्य को वि०सं० १२२२ में पूर्ण हुआ बतलाया गया है जबकि जिनप्रभसूरि इस कार्य को वि० सं० १२२० में सम्पन्न हआ मानते हैं। इसी प्रकार वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा यहाँ सम्पन्न कराये गये निर्माण कार्यों का विवरण हमें यहीं पर वि०सं० १२८८ में उत्कीर्ण कराये गये शिलालेख तथा अन्य स्रोतों से भी प्राप्त होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि इस तीर्थ के सम्बन्ध में जिनप्रभसूरि द्वारा उल्लिखित प्रायः सभी विवरण पूर्व परम्परा पर आधारित एवं प्रामाणिक हैं।
६. काशहृद कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत काशहृदका उल्लेख है और यहाँ आदिनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है-- काशहृदे त्रिभुवनमङ्गलकलशः श्रीआदिनाथः ।
कल्पप्रदीप, पृ० ८५ काशहद का एक 'नगरी' के रूप में सर्वप्रथम उल्लेख मैत्रकवंशीय शासक खरगह 'प्रथम' के ई० सन् ६१६ के 'एक अभिलेख में तथा 'विषय' के रूप में धरसेन के ई० सन् ६२४ के कासींदरा दानशासन में प्राप्त होता है । ध्रुवसेन 'तृतीय' के ई० सन् ६५०-५१ के एक दान१. जिनविजयमुनि-संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखाङ्क ५०-५१ ।
यह दण्डनायक उदयन मंत्री का पुत्र आम्मड़ ( आम्रभट्ट ) माना जाता है। द्रष्टव्य-देसाई, मोहनलाल दलीचन्द----जैन साहित्यनो संक्षिप्त
इतिहास, पृ० २६८-७१। २. सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादिवस्तुपालप्रशस्तिसंग्रह, (सिंघी जैन ग्रन्थ
माला नं० ५, संपा० मुनिपुण्यविजय) पृ० ४४-५८ । ढाकी, एम ए०-"वस्तुपालतेजपालनी की तिनात्मक प्रवृत्तिओ" स्वाध्याय वर्ष ४ अंक ३ पृ. ३१४-१५
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