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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
इक्कारसय-सहीउ पंचासीय वच्छरि नेमि भुवण उध्धरिउ साजणी नर सेहरे 1१1९ प्रभावकचरत में कहा गया है कि सौराष्ट्र पर सज्जन का अधिकार नौ वर्षों से चला आ रहा है
अद्य प्राग्नवमे वर्षे स्वामिनाधिकृतः कृतः । आरुरोह गिरि जीर्णमद्राक्षं च जिनालयम् ॥
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प्रभावकचरित ( संपा० जिनविजय) पृ० १९५, श्लोक संख्या ३३३ इस प्रकार स्पष्ट है कि वि० सं० ११७६ में सज्जन सौराष्ट्र का दण्डनायक नियुक्त हो चुका था और वि० सं० ११८५ में उसने यहाँ स्थित नेमिनाथ जिनालय का निर्माण कराया ।
प्रबन्धचिन्तामणि के अनुसार ३ वर्षों की आय से सज्जन ने नेमिनाथ के काष्ठमय प्रासाद को पाषाणनिर्मित कराया
तेन स्वामिनमविज्ञाप्यैव वर्ष त्रयोद्गाहितेन श्रीमदुर्ज्जयन्ते श्रीनेमी श्वरस्य काष्ठमयं प्रासादमपनीय नूतनः शैलमयः प्रासादः कारितः । प्रबन्धचितामणि - ( संपा० जिनविजय ) पृ० ६४
धर्मघोषसूरि द्वारा रचित गिरनारकल्प' ( रचनाकाल वि० सं० १३२० / ई० सन् १२६४ ) के अनुसार सज्जन के पूर्व मालवा के याकुडी ने इस जिनालय के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया --
याकुड्यमात्य-सज्जनदण्डेशाद्या अपि व्यधुर्यत्र । नेमि-भवनोद्धृतिमसौ गिरिनारगिरीश्वरो जयति ॥२७॥
परन्तु कार्य पूर्ण होने के पूर्व ही याकुडी का मृत्यु हो गयी, अतः सज्जन ने उसे पूर्ण कराया ।
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पुरातन प्रबंध संग्रह के अनुसार सज्जन द्वारा कराये गये निर्माण से १३५ वर्ष पूर्व याकुडी ने निर्माण कार्य प्रारम्भ किया था । सज्जन द्वारा उक्त निर्माण वि०सं० ११८३ / ई० सन् ११२६ में पूर्ण कराया गया, अतः याकुडी द्वारा कराये गये निर्माण का काल ई० सन् ९९० के आसपास माना जा सकता है ।
१ प्राचीनगूर्जर काव्यसंग्रह (संपा० सी० डी० दलाल), पृ० १५० २. ' मंत्रीसज्जनकारित रैवततीर्थोद्धारप्रबन्ध" - पुरातनप्रबन्धसंग्रह पृ० ३४
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