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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ ही रहा होगा और आक्रमणार्थ जाते समय वह मार्ग के मंदिरों को तोड़ता गया होगा। जिनप्रभसूरि ने गोरी के आक्रमण के समय यहाँ जिन प्रतिमा को भग्न करने की बात तो कही है परन्तु जिनालय तोड़ा गया अथवा नहीं यह अज्ञात है। उन्होंने आक्रामकों के अन्धत्व एवं रुधिर वमन से ग्रसित होने की जो बात कही है, वह उनका व्यक्तिगत कोप ही समझना चाहिए।
मुण्डस्थल कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प" के अन्तर्गत मुण्डस्थल का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ भगवान् महावीर के मंदिर होने की बात कही गयी है।।
मुण्डस्थल आज मुंगथला के नाम से प्रसिद्ध है। और वर्तमान सिरोही जिले में अवस्थित है। यहाँ वि०सं० ८९५/ई० सन् ८३८ का एक शिवालय विद्यमान है', जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि ९वीं शती में यह नगरी अस्तित्व में आयी होगी। यहाँ स्थित महादेव और महावीर के मंदिर अपनी प्राचीनता के लिये प्रसिद्ध हैं। ___ मुण्डस्थल जैन तीर्थ के रूप में पूर्व मध्ययुग में प्रतिष्ठित हुआ। उत्तरकालीन जैन परम्परानुसार महावीर स्वामी ने छद्मवस्था में अर्बुदमंडल में विहार किया और गणधर के शी ने यहाँ उनका एक जिनालय निर्मित कराया। यह बात अष्टोत्तरीतीर्थमाला (महेन्द्रसूरि ई० सन् १३वीं शती)३ तथा इस जिनालय से प्राप्त वि० सं १४२६ के एक शिलालेख से ज्ञात होती है। परन्तु ये बातें स्पष्टतः काल्प१. शाह, अम्वालाल पी०-जैनतीर्थसर्वसंग्रह, पृ० २७९ २. वही ३. मुनि विशालविजय-मुण्डस्थलमहातीर्थ, पृ० १५ से उद्धृत ४. पूर्वे छद्मस्थकालेऽर्बुदभुवि यमिनः कुर्वतः सद्विहारं [ सप्त ] त्रिशे च
वर्षे वहति भगवतो जन्मत: कारितास्ताः (सा)। श्रीदेवार्यस्य यस्योल्लसदुपलमयी पूर्णराजेन राज्ञा श्रीकेशीसु ( शिना ) प्रतिष्ट: स जयति हि जिनस्तीर्थ-मुण्डस्थलस्तुः ( स्थः ) ॥ मुनि जयन्तविजय-अर्बुदाचलप्रदक्षिणा जैनलेख संदोह, लेखाङ्क ४८
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