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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
५. उर्जयन्त गारे उर्जयन्त ( वर्तमान गिरनार ) जैन धर्मावलम्बियों का एक महान् तीर्थ है । जैन मान्यतानुसार २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के अन्तिम तीन कल्याणक-दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण यहीं हुए, जिससे यह स्थान जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
कल्पप्रदीप के अन्तर्गत उर्जयन्त ( रैवतक-गिरनार ) पर चार कल्प लिखे गये हैं, जो इस प्रकार हैं --
१-रैवतकगिरिकल्पसंक्षेप । २-उज्जयन्तस्तव। ३-उज्जयन्तमहातीर्थकल्प । ४-रैवतकगिरिकल्प ।
इनमें से प्रथम तीन कल्पों में तीर्थ की महिमा आदि का ही विवेचन है और चौथे रैवतकगिरिकल्प में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक विवरण समाविष्ट हैं, अतः यहाँ केवल इसी कल्प के विवरणों का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है। जिसकी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं_ “पश्चिम दिशा में सौराष्ट्र देश में रैवतकगिरि के शिखर पर नेमिनाथ का जिनालय है। एक बार काश्मीर देश से अजित और रतन नामक दो श्रावक, संघ के साथ यहां आये और पूजा-अर्चना प्रारम्भ की। बार-बार न्हणव कराये जाने से नेमिनाथ की लेप्यमयी प्रतिमा गल गयी, जिससे संघपति अजित ने वहां दूसरी प्रतिमा स्थापित कर दी। चौलुक्य नरेश जयसिंह सिद्धराज ने राखेंगार को मारकर सज्जन को जब सौराष्ट्र का दंडाधिपति नियुक्त किया, तो उसने वि. सं. ११८५ में यहां नेमिनाथ का सुन्दर मंदिर बनवाया। मालववंशीय श्रेष्ठी भावड़शाह ने मंदिर पर स्वर्णकलश चढ़ाया । कुमारपाल के समय सौराष्ट्र के दण्डनायक आम्मड़ ने पर्वत पर सीढियां बनवायीं। राजा वीरधवल के मन्त्री तेजपाल ने गिरनार की तलहटी में अपने नाम से तेजलपुर नामक नगर बसाया और वहां अपने पिता के नाम पर आसराजविहार और माता के नाम से कुमरसरोवर का निर्माण कराया । वस्तुपाल ने पर्वत के शिखर पर शत्रुज्जयावतारमंदिर, अष्टापदसम्मेतशिखरमंडप, कपर्दियक्ष एवं
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