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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
जिनप्रभसूरि का यह विवरण - " अणहिलपुर में ब्रह्माणगच्छीय आचार्य यशोभद्रसूरि ने नवनिर्मित अरिष्टनेमि के जिनालय पर ध्वजारोहण किया, " स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है । इस सम्बन्ध में एकमात्र समस्या है ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित समय निर्देश की, जो उपरोक्त परिस्थिति में संदिग्ध ही नहीं अपितु असंभव है ।
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अणहिलपुर को वि० सं० ८०२ में बसाये जाने की बात को अधिकांश विद्वानों ने स्वीकार किया है, परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार ८०२ वि० सं० न होकर शक सं० होना चाहिए। जहाँ तक चापोत्कटों की वंशावली का प्रश्न है, इस सम्बन्ध में लम्बे समय से ही मतभेद रहा है । इस बारे में हमें दो मत दिखाई पड़ते हैं । प्रथम मतानुसार चापोत्कटों की वंशावली इस प्रकार है-
१ - वनराज, २- योगराज, ३- रत्नादित्य, ४ - वैरसिंह, ५-क्षेमराज, ६- चामुण्डराज, ७-आहड़, ८- भूअड़ और ९ - सामन्तसिंह । द्वितीय मतानुसार * चापोत्कटों की वंशावली इस प्रकार है१ - वनराज, २- योगराज, ३-क्षेमराज, ४ - भूअड़राज, ५ - वैरसिंह, ६ - रत्नादित्य और ७ - सामन्तसिंह |
जिनप्रभसूरि ने द्वितीय मत को ही प्रामाणिक मानते हुए उसी के अनुसार चापोत्कटों की वंशावली प्रस्तुत की है ।
चापोत्कटों की संशोधित वंशावली इस प्रकार है
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१. पारीख और शास्त्री – गुजरातनो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास, भाग ३, पृ० १२५ ।
२. ढाकी, एम० ए० -- "लेट गुप्ता स्कल्पचर्स फ्राम पाटन अणहिलवाड" बुलेटिन - म्यूजियम एण्ड पिक्चर्स गैलरी बडोदा जिल्द १९( ई० सन् १९६५-६६ ) पृ० १७ - २८, यादटिप्पणी- ६५ ३. सुकृतसंकीर्तन, सर्ग १: सुकृतकीर्तिकलोलिनी, श्लोक ९-२२ प्रबन्धचिन्तामणि (ए और D हस्तप्रति) पृ० १५; विचारश्रेणी, पृ० ९ धर्मारण्यमहात्म्य अ. ६६, श्लोक ८७-९७ आदि ।
४. प्रबन्धचिन्तामणि पृ० १४-१५; कुमारपालप्रबन्ध ( जिनमण्डनसूरि ) पृ० २; प्रवचनपरीक्षा पृ० २७१; मिरात ए अहमदी, पृ० २३; गुर्जरदेश राजवंशावली - स्वाध्याय, खंड -५, पृ० २४८ - २४९ ।
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