________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१३३
महागिरि, सुहस्ति और वज्रस्वामी तो यहाँ आये थे, परन्तु भद्रबाहु ' के यहाँ आगमन की कोई चर्चा वहाँ नहीं मिलती ।
ग्रन्थकार ने सुदर्शन श्रेष्ठी सम्बन्धी जिस कथानक का उल्लेख किया है वह श्वेताम्बर जैन साहित्य' पर आधारित है ।
1
स्थूलभद्र द्वारा इसी नगरी में कोशा नाम की गणिका की चित्रशाला में चातुर्मास करने का भी विवरण जैन परम्परा पर ही आधारित है । इसी प्रकार मगध में पड़े १२ वर्षीय अकाल की चर्चा श्वेताम्बर और दिगम्बर" दोनों परम्पराओं में प्राप्त होती है । परन्तु यह अकाल कब पड़ा - इस सम्बन्ध में दोनों परम्परायें भिन्न-भिन्न हैं । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार अन्तिम नन्द राजा के समय यह दुर्भिक्ष पड़ा था । इसके विपरीत दिगम्बर परम्परा इसे मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के अन्तिम समय में रखती है और उसी समय भद्रबाहु के साथ चन्द्रगुप्त मौर्य के दक्षिण भारत जाने की भी चर्चा है । " जिनप्रभ ने १२ वर्षीय अकाल के समय भद्रबाहु साथ श्रवणबेलगोला चले गये ।
१ दिगम्बर परम्परानुसार मगध में पड़े जैन संघ, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य भी थे, के
( जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका - पं० कैलाश चन्द्र शास्त्री, पृ० ३४२-३४६)।
२. आवश्यकचूर्णी, उत्तरभाग, पृ० २७०
३. पाडलिपुत्ते दो गणियाओ - कोसा उवकोसा य, कोसाए समं थूलभद्दसामी अच्छित आसि .........
आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ५५४ ४. तंमि य काले बारसवरिसो दुक्कालो उवट्ठितो ।
वही, उत्तरभाग, पृ० १८७ ५. शास्त्री, कैलाशचन्द्र – जैन साहित्य का इतिहास - पूर्वपीठिका, पृ० ३७१
६. उत्तराध्ययनवृत्ति ( कमलसंग्रम), पृ० ३
७. मउडधरेसु चरिमो जिगदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य ।
भद्रबाहुवचः श्रुत्वा चन्द्रगुप्तो नरेश्वरः ।
अस्यैव योगिनः पार्श्वे दधौ जैनेश्वरं तपः ॥
-
'भद्रबाहुकथानकम्' बृहत्कथाकोश, पृ० ३१८
विस्तार के लिये द्रष्टव्य - शास्त्री, कैलाशचन्द्र, पूर्वोक्त, पृ० ३४२ और आगे
Jain Education International
तिलोयपण्णत्ती ४।१४८१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org