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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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हुआ है, ऐसी परिस्थिति में जिनप्रभसूरि के उक्त वक्तव्य को स्वीकार करने में कुछ कठिनाई अवश्य प्रतीत होती है, परन्तु उनके उक्त बात को पूर्णतया अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता । यदि यहाँ से भी श्रीशैलम के समान ही कोई अभिलेख अथवा जैन पुरावशेष प्राप्त हो जाये तो इस स्थान की भी जैन तीर्थ के रूप में मान्यता स्वतः सिद्ध हो जायेगी ।
मध्यप्रदेश के निमाड़ जिलान्तर्गत मांधाता के समीप नर्मदा नदी के मध्य स्थित एक द्वीप ओंकारेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है, जहाँ शैवों का प्रसिद्ध और अति महिम्न शिवालय है । इस तीर्थ से भिन्न नर्मदा के दूसरे तट पर दिगम्बरों का प्रसिद्ध सिद्धवरकूट नामक तीर्थ है, जहाँ वर्तमान युग के कई जिनालय विद्यमान हैं । "
३ कुडुंगेश्वरनाभेयदेवकल्प
उज्जयिनी नगरी में कुडुंगेश्वर नामक एक जिनालय था, जिसे श्वेताम्बर परम्परानुसार अवन्तिसुकमाल के पुत्र ने अपने पिता के मरणस्थल पर निर्मित कराया, जो बाद में हिन्दुओं के अधिकार में आ गया। विक्रमादित्य (संवत्सर प्रवर्तक ?) के शासन काल में एक बार आचार्य सिद्धसेन दिवाकर वहाँ पहुंचे । घटना विशेष से उन्होंने शिवलिंग से तीर्थङ्कर प्रतिमा को प्रकट किया और वह पुनः जैनों के अधिकार में आ गया। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के "कुड़ गेश्वर नाभेदेवकल्प" के अन्तर्गत इस स्थान से सम्बंधित जैन मान्यताओं का यथाश्रुत विवरण दिया है, जो इस प्रकार है :-"
“लाट देश में भृगुकच्छ नामक एक नगरी थी, वहां स्थित सुप्रसिद्ध शकुनिका विहार में वृद्धवादीसूरि नामक एक जैनाचार्य रहते थे । एकबार दक्षिणदेश से आये हुए कर्णाटभट्ट दिवाकर नामक विद्वान् को उन्होंने शास्त्रार्थ में पराजित कर उसे अपना शिष्य बनाया, जो
१. डे, नन्दोलाल – ज्योग्राफिकल डिक्सनरी ऑफ ऐंश्येंट एण्ड मिडुवल इण्डिया, पृ०५ ।
२. जोहरापुरकर, विद्याधर - तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १८३-८४ ।
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