________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१८३ ओसवाल वणिकों की यहीं उत्पत्ति हुई मानी जाती है।' ८वीं९वीं शती के लगभग इस जाति की उत्पत्ति स्वीकार की जाती है। इससे पूर्व इस जाति की प्राचीनता का उल्लेख नहीं मिलता। सचिया माता के मन्दिर में वि० सं० १२३४, वि० सं० १२३६, वि०सं० १२४५ और वि० सं० १२४६ के लेख विद्यमान हैं। वि०सं० १२४५ के लेख से ज्ञात होता है कि पाल्हिया की पुत्री और यशोधर की पत्नी सम्पूरण द्वारा महावीर स्वामी के रथ के लिये दान दिया गया । ३ नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबंध ( कक्कसूरि, रचनाकाल वि०सं०१३९५) के अनुसार यह स्वर्णमय रथ वर्ष में एकबार नगर में घुमाया जाता था।
उपकेशपुर से ही श्वेताम्बर श्रमण संघ की एक प्रसिद्ध शाखा उपकेशगच्छ का उदय हु।।
उपकेशगच्छ के कई नाम मिलते हैं यथा-ऊकेश, उएस, ओसवाल, कडवा आदि । यह गच्छ भगवान् पार्श्वनाथ से अपनी परम्परा को जोड़ता है। इस गच्छ से सम्बन्धित अनेक प्रतिमा लेख तथा उपकेशगच्छचरित्र ५--( रचनाकार-कक्कसूरि, रचनाकाल --वि० सं० १३९३/ई० सन् १३३६ ), नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबंध ( रचनाकाल
१. ढाकी, पूर्वोक्त, पृ० ६३ २. नाहर --पूर्वोक्त, लेख क्रमांक ८०४-५-६-७-८ ।
३. सं० १२४५ फाल्गुन सुदि ५ अद्येह श्रीमहावीर रथशाला निमित्तं......
. . . . . पाल्हियाधीन देव चन्द्रवधू यशधर भार्या सम्पूर्ण श्राविकयाआत्म श्रेयार्थ समस्त गोष्ठि प्रत्यक्षं च आत्मीया स्त्रजन वर्ग समतेन आत्मीय
गृहं दत्तं । नाहर, वही, लेख क्रमांक ८०७ । ४. जैन, कैलाशचंद्र –पूर्वोक्त, पृ० १८४ । ५. नाहटा, अगरचंद -- "जैन श्रमणों के गच्छों पर विशद् प्रकाश' यतीन्द्र
सूरि अभिनन्दनग्रन्थ, पृ० १४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org