________________
पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
के हैं।' इन लेखों से स्पष्ट होता है कि यह जिनालय वास्तव में महावीर स्वामी को समर्पित था। इसी जिनालय से वि०सं० १६८६/ ई० सन् १६२९ के भी अभिलेख मिलते हैं जिनके अनुसार वि० सं० १६८६ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया और यहाँ पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की गयी। इससे स्पष्ट है कि वि० सं० १६८६ में यह जिनालय पार्श्वनाथ स्वामी के जिनालय के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। यहाँ का महावीर स्वामी का जिनालय, जिसकी पहले चर्चा की गई है, पार्श्वनाथ के जिनालय में कैसे बदल गया ? ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान-गुजरात पर मुस्लिम आक्रमण के दरम्यान यहाँ स्थित महावीर जिनालय को नष्टप्राय कर दिया गया होगा। परम्परानुसार किसी गोरी सुल्तान ने यहाँ आक्रमण किया था। तवारिकफरिश्ता ( ई० सन् १६वीं शती का अन्तिम चरण) के अनुसार कुतुबुद्दीन ऐवक जो मुहम्मद गोरी का गुलाम था, ने पाली पर अधिकार कर लिया था । ई० सन् ११९७ में ऐबक ने अणहिलवाड पर आक्रमण किया और इसी समय पाली और नाडौल पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार स्पष्ट है कि १२वीं शती के अन्त तक यह क्षेत्र मुसलिम अधिकार में आ गया था। १७वीं शती में जब जैनों ने इस जिनालय का जीर्णोद्धार कराया तब वे शायद यह भूल चुके थे कि यह किस तीर्थंकर का मन्दिर है और उन्होंने वि० सं० १६८६ में यहाँ पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित कर दी।४।। ___ पाली, राजस्थान प्रान्त के जोधपुर शहर से ७२ कि० मी० दक्षिणपश्चिम में वान्दी नदी के तट पर स्थित है। १. नाहर, पूरनचन्द -पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८०९-८१५ 1
इसके अलावा इस जिनालय में वि० सं० १५०६ से वि० सं० १७०० तक के लेख भी विद्यमान हैं । द्रष्टव्य-नाहर-पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८१६--
८२८ । २. नाहर-पूर्वोक्त, लेखाङ्क ८२५-२७ । ३. प्रोग्रेस रिपोर्ट, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, वेस्टर्न
सकिल, ई० सन् १९०८, पृ० ४५-४६ । ४. वही, पृ० ४६ । ५. जैन, कैलाश चन्द्र-पूर्वोक्त, पृ० २९२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org