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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१५७ __उपयुक्त स्थानों में से चित्र कूट, गोह्नद, वसाढ़ और घुटारसी आदि की अलग-अलग पहचान की गयी है । गोहद को क्राउझे' ने गोधरा और भाटदेश को जैसलमेर के आस-पास का प्रदेश बतलाया है और शेष नामों के संबंध में उन्होंने खोज की आवश्यकता पर बल दिया है। शासनपट्टिका लिखाने वाले राजा को 'श्रीविक्रमादित्यदेव', कहा गया है और उन्हें निम्नलिखित विशेषण दिया गया है
सर्वत्रानृणीकृतविश्वविश्वम्भरांकितनिजकवत्सरः ।
अर्थात्-"जिसका एक ही निजी संवत्सर (जो चालू है) समस्त पृथ्वी को सर्वत्र ऋण-रहित करने के कार्य से अंकित है। इसका तात्पर्य है कि जिनप्रभसूरि के अनुसार “संवत्सरप्रवर्तक विक्रमादित्य' ने श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा प्रतिबोधित होकर अपने निजी संवत् १ की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन जैन धर्म अगीकार किया और "कुड़गेश्वरऋषभदेव' को उक्त ग्राम समर्पित किया।
जहाँ तक समयनिर्देश का प्रश्न है, ग्रंथकार द्वारा उल्लिखित तिथि विक्रमसंवत् १ की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है। ज्योतिषशास्त्रानुसार गणित द्वारा पता लगाया गया है कि विक्रमसंवत् १ अर्थात् ५६ ई० पूर्व की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुरुवार अथवा शुक्रवार हो सकता है. यदि संवत् का प्रारम्भ कार्तिक से माना जाये। इस रीति से बिक्रमसंवत् का प्रारम्भ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से गिनना जैन प्रणाली के अनुकूल है । अतः जिनप्रभ द्वारा उल्लिखित समय तो अबाधित है। परन्तु कुछ अन्य बातों के कारण इस विवेचन की प्रामाणिकता में शंका उत्पन्न हो जाती है-जैसे चित्रकूट मंडल का उल्लेख । प्रस्तुत चित्रकूट आज का चित्तौड़ हो सकता है, जिसे वि०सं० ६०९ में चित्राङ्गद सोरिया ने बसाया था, उसी के नाम पर इसे चित्रकूट कहा जाने लगा। इस आधार पर चित्रकूट का विक्रम सं० १ में विद्यमान होना असंभव है। संदेह का दूसरा कारण है श्वेताम्बर शब्द । चूकि निग्रंथसंघ वीरनिर्वाण संवत् ६०९ में श्वेताम्बर और १. विक्रमस्मृतिग्रंथ (उज्जैन सं० २००१), पृ० ४१३ २. वही, पृ० ४१३ ३. वही ।
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