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मध्य भारत के जैन तीर्थ जैन परम्परानुसार भगवान महावीर के समय सिन्धु-सौवीर देश का राजा उदायन था, उसके पास महावीर की काष्ठचन्दन की एक प्रतिमा थी, जो जीवन्तस्वामो के नाम से विख्यात थी। उसकी पत्नी प्रभावती उसे नित्य पूजती रही। रानी के मृत्योपरान्त उदायन ने देवदत्ता नामक एक दासी को पूजा के लिये उक्त प्रतिमा सौंप दिया। कुछ समय पश्चात् उस दासी का उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत ने अपहरण कर लिया। देवदत्ता अपने साथ जीवन्तस्वामी की प्रतिमा भी लेती गयी
और उसके स्थान पर उसकी प्रतिकृति छोड़ गयी। उदायन को जब बात ज्ञात हुई तो उसने प्रद्योत का पीछा किया और परास्त कर उसे बन्दी बना लिया। सहधर्मी होने के कारण बाद में उदायन ने उसे मुक्त कर दिया और उक्त प्रतिमा भी उसे वापस कर अपने देश के लिये प्रस्थान किया । वापस लौटते समय वर्षा ऋतु आ जाने से वह जंगल में ही वर्षावास के लिये रुक गया। उसके साथ १० अन्य राजा भी थे, अतः उन्होंने वहीं नगर बसाया और उसका नाम दशपुर रखा। जीवन्तस्वामी की प्रतिमा को वहीं नवनिर्मित जिनालय में स्थापित किया गया और उस नगरी की आय भी उक्त जिनालय को समर्पित कर दी गयी । वीरनिर्वाण के ५२२ वर्ष पश्चात् आर्यरक्षितसूरि का इस नगरी में जन्म हुआ। उनके पिता का नाम सोमदेव और माता का १. उदायणो ससाहणेण पडिणियत्तो, पज्जोओ वि बद्धो खंधावारे विज्जति ।
उदायणो आगओ, जाव दसपुरोहसे तत्थ वरिसाकालो जातो। दस वि मउडबद्धरायाणो णिवेसेण ठितो । .. .. .. निशीथचूर्णी, तृतीय भाग,
पृ० १४७ । २. ii) आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ. ४०१ (ii) निडाले य से अंकों कओ दासीपतिआ उदायणरण्णो, पच्छा णिय
यणगरं महाविओ, पडिमा नेच्छइ, अन्तरावासेण उबद्धो ठिओ, ताहे उक्खंदभयेण दस वि रायाणो धूलियागारे करेत्ता ठिया ।..... ताहे तं दसपुरं जायं ।
हरिभद्रसूरि कृत आवश्यकवत्ति पृ० २९९-३०० ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं दशपुरं नगरं, तत्थ सोमदेवो वंभणी अड्डो, रोदसोम्मा भारिया समणोवासिया, तेसि पुत्ते रक्खिए णाम दारए...।
आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ३९७
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