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पूर्व भारत के जैन तीर्थ प्रदेश के देवरिया जिले के उत्तरी भाग में स्थिति सठियांव नामक ग्राम को प्राचीन पावा माना है जो उचित प्रतीत होता है। __ अब प्रश्न उठता है कि प्राचीन पावापुरी के स्थान पर नवीन पावापुरी की किस समय कल्पना कर ली गयी? इस प्रश्न का ठीकठीक उत्तर तो नहीं दिया जा सकता, परन्तु इतना निश्चित है कि ई० सन् की १४वीं शती के पूर्व वर्तमान पावापुरी अवश्य ही अस्तित्व में आ च की थी। इस सम्बन्ध में जिनप्रभसूरि के विवरण से हमें पर्याप्त सहायता मिलती है। उन्होंने अपापापुरीकल्प के अन्तर्गत पावापुरी से पहाड़ियों के दिखाई देने का उल्लेख किया है, परन्तु प्राचीन पावा के पास कोई पर्वत नहीं है जब कि वर्तमान पावापुरी से राजगिर की पहाड़ियाँ आज भी स्पष्ट दिखाई देती हैं। इससे यही सिद्ध होता है कि जिनप्रभसूरि के समय तक वर्तमान पावापुरी प्रतिष्ठित थी और प्राचीन पावा पूर्व की शताब्दियों में कभी विलुप्त हो चुकी थी।
वर्तमान पावापुरी बिहार राज्य के नालन्दा जिले में स्थित है। यहाँ ग्राम में एक विशाल सरोवर के मध्य एक भव्य जिनालय विद्यमान है, जो श्वेताम्बरों के अधिकार में है। इसके अलावा ग्राम में एक अन्य श्वेताम्बर मन्दिर तथा एक दिगम्बर मंदिर भी हैं ।
१. सरावगी, के० एल०-पावासमीक्षा ( सारण, बिहार १९७२ ई० ),
पृ० ९५; डा० जगदीशचन्द्र जैन, डा० ए० एन० उपाध्ये, डा. मोतीचन्द्र
आदि अधिकारी विद्वानों ने भी श्री सरावगी के मत का समर्थन किया है। २. ऐसा अनुमान किया जाता है कि ८वीं-९वीं शती तक पूर्वी उत्तर प्रदेश
और बिहार से जैन धर्म प्रायः विलुप्त हो चुका था। अधिकांश जैनी पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में बस गये थे। ऐसी स्थिति में उनके तीर्थस्थान भी प्रायः विच्छिन्न हो गये । मुस्लिम शासन के समय देश में राजनैतिक स्थिरता के कारण जैनों ने दक्षिणी बिहार में पुनः प्रवेश किया और विस्मृत तीर्थों की स्थिति प्रायः अनुमान के आधार पर निश्चित कर वहां जिनालय आदि निर्मित कराये। वर्तमान पावापुरी, कुण्डग्राम, सम्मेत
शिखर आदि इसी प्रकार अस्तित्व में आये। ३. तीर्थदर्शन, प्रथम खंड, पृ० ३६-३७ ।
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