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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१४९ जैन साहित्य में कलिङ्गदेश' और उसकी राजधानी कांचनपुर' का उल्लेख तो है, परन्तु यहां ऋषभदेव के मंदिर होने की बात को जिनप्रभसूरि के अलावा किसी अन्य जैन ग्रंथकार ने उल्लिखित किया हो, ऐसा अभी तक देखने में नहीं आया है। अतः जिनप्रभ के उक्त वक्तव्य को उनकी व्यक्तिगत श्रद्धा के आधार पर ही स्वीकार किया जा सकता है।
२. माहेन्द्र पर्वत कल्पप्रदीप के 'चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत माहेन्द्रपर्वत का भी उल्लेख है और यहाँ भगवान् पार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है।
उड़ीसा से मदुरा तक सम्पूर्ण पर्वतशृखला माहेन्द्रपर्वत के नाम से जानी जाती है। वर्तमान में उड़ीसा प्रान्त के गंजाम जिलान्तर्गत स्थित पहाड़ी माहेन्द्रपर्वत के नाम से अभिहित की जाती है। जैन पौराणिक साहित्य में इन स्थानों का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु जैन तीर्थ के रूप में जिनप्रभसरि को छोड़कर किसी अन्य जैन ग्रंथकार ने इस स्थान का उल्लेख नहीं किया है। च कि यह पर्वत पोराणिक कथाओं में उल्लिखित है, अतः इसकी पवित्रता एवं महत्त्व तो निर्विवाद है, ऐसी स्थिति में वहाँ जैन तीर्थ होने की जिनप्रभसूरि की मान्यता को अस्वीकार तो नहीं किया जा सकता। हो सकता है उनके समय में यहां आदिनाथ का कोई जिनालय रहा हो ।
१. मेहता और चंद्रा - प्राकृतप्रापरनेम्स, पृ० १६४,
जोहरापुरकर, विद्याधर-तीर्थवन्दन संग्रह, पृ० २३,२६,३५
और आगे। २. मेहता और चन्द्रा-पूर्वोक्त, पृ० १६४,
जैन, जगदीशचंद्र -जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज,
पृ० ४६६-६७ । ३. काणे, पी०वी०-धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग ३, पृ० १४७० । ४. पउमचरिउ ३०।१९; आदिपुराण, २९।८८ ।
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