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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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किये। उनके ११ गणधरों ने राजगृह नगरी में ही मोक्ष प्राप्त किया। गणधर अकम्पित का यहीं जन्म भी हुआ था। अरासन्ध, श्रेणिक, कुणिक आदि नरेश; हल्ल, विहल्ल, अभयकुमार, नंदिसेण आदि राजकुमार; जम्बूस्वामी, कयवनाऋषि, शय्यंभवसूरि आदि मुनि तथा नंदा आदि पतिव्रता स्त्रियां एवं शालिभद्र जैसे प्रसिद्ध श्रेष्ठी इसी नगरी से संबंधित थे। यहां नगर के अन्दर कल्याणक स्तूप एवं उसके समीप गौतमस्वामी का मंदिर है। यहां के वणिकों में आधे जैन और आधे बौद्ध धर्मावलम्बी हैं।" __ जिनप्रभसूरि ने भारगिरि के प्राकृतिक दृश्य का जो वर्णन किया है वह वहां आज भी देखी जा सकती है। शालिभद्र धन्नाऋषि के सम्बन्ध में उन्होंने जो बात कही है उसका उल्लेख हमें मरणसमाधि ( रचनाकाल-अज्ञात ) नामक जैन ग्रंथ में प्राप्त होता है। यहां के जिस अंधेरी गुफा की बात उन्होंने बतलायी है, उसका उल्लेख हमें आगमिक साहित्य में भी प्राप्त होता है। अपने समय में यहां अनेक चैत्यों और खंडित जिन प्रतिमाओं के होने की ग्रंथकार ने जो बात कही है, उसका समर्थन यहां से प्राप्त भग्न जिनालयों एवं खंडित प्रतिमाओं से-जो ५वीं से ९वीं शती तक के हैं,' होता है। इसी प्रकार यहां के बौद्ध विहारों का उन्होंने जो उल्लेख किया है, वह भी यथार्थ है। इससे ग्रंथकार के विवरण की निष्पक्षता और धार्मिक सहिष्णुता परिलक्षित होती है।
राजगृह नगरी के जिन विभिन्न नामों का जिनप्रभसूरि ने उल्लेख
१. मरणसमाधि-४४४; मूल ग्रन्थ उपलब्ध न होने के कारण यह उद्धरण
प्राकृतप्रापरनेम्स-पृ० ७२७ के आधार पर दिया गया है । २. तए णं रायगिहस्स णगरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसिभाए सीहगुहा नाम चोरपल्ली होत्था,........
ज्ञातृधर्मकथा, १८।१० ३. घोष, अमलानन्द--जैन कला और स्थापत्य, खंड १, पृ० १२५-१२६
एवं १७१-२ ४. अनन्त कुमार-बुद्धकालीन राजगृह, पृ० ७७-८०
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