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पूर्व भारत के जैन तीर्थ श्वेताम्बरों ने जहां इस तीर्थ को सम्मेत कहा है, वहीं दिगम्बरों ने सम्मेद नाम से अभिहित किया है। __मध्ययुगीन श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थकारों ने तीर्थ विषयक रचनाओं में इस तीर्थ का उल्लेख किया है-- १-उदयकीर्ति- तीर्थवन्दना ई० सन् १३ वीं शती २- खरतरगच्छीय-पूर्वदेशीयचैत्यपरिपाटी ई० सन् १४३६
जिनवर्धनसूरि ३-गुणकीति- तीर्थवन्दना३ ई० सन् १५वीं शती ४-हंससोमः- पूर्वदेशीयचत्यपरिपाटी ई० सन् १४९९ ५-ज्ञानसागर--- सर्वतीर्थवंदना ई० सन् १६वीं शती ६-जयविजय- सम्मेतशिखरतीर्थमाला ई० सन् १६०७ । ७--जयसागर- तीर्थजयमाला ई० सन् १७वीं शती ८-सोमसेन-- पुष्पांजलिजयमाला' ई० सन् १७वीं शती ( ix) अष्टापदचम्पोज्जयन्तपापासम्मेतशैलशिखरेषु यथाक्रमवृषभो वासु
पूज्योऽरिष्टनेमिर्वीरो भगवान् शेषाश्च तीर्थकृतः सिद्धि गताः, अष्टापदे ऋषभस्वामी सिद्धिमतमत्, चम्पायां वासुपूज्यः उज्जयन्तेऽरिष्टनेमिः भगवान् महावीर: पाषायां शेषा अजितस्वामिप्रभृतयः सम्मेतशैलशिखरे इति ॥
आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २१३ ( x ) वीसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवंदिदा धुदकिलेसा । सम्मेदे गिरिसिहरे णिव्वाणगया णमो तेसि ।।
प्राकृत-निर्वाणकाण्ड-२ १. जोहरापुरकर, विद्याधर-तीर्थवन्दनसंग्रह पृ० ३८-४० २. जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १८, पृ० ७३-७७ ३. जोहरापुरकर --पूर्वोक्त, पृ० ४९-५१ ४. विजयधर्मसूरि–प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, पृ० १४-२१ ५. जोहरापुरकर-पूर्वोक्त, पृ० ५९ और आगे ६. विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, पृ० २२-३२ ७. जोहरापुरकर-पूर्वोक्त, पृ० ८७-८८ ८. वही, पृ० ८५
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