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पूर्व भारत के जैन तीर्थ
जिनप्रभ के समय यहाँ मल्लिनाथ और नमिनाथ के अलग-अलग चैत्यालय थे। मध्ययुगीन तीर्थमालाओं में भी इस तीर्थ का उल्लेख है, परन्तु वर्तमान में यह तीर्थ विच्छिन्न है।
मिथिला को बिहार राज्य के दरभंगा जिले के उत्तर में, नेपाल की सीमा पर स्थित आधुनिक जनकपुर नामक कस्बे से समीकृत किया जाता है।
७. भारगिरि-कल्प मगध जनपद की प्राचीन राजधानी राजगह पांच पहाड़ियों वैभार, विपुल, गृद्धकूट, पांडव और ऋषिगिरि से घिरी हुई थी, इनमें से वैभार और विपुल जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं । जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत वि० सं० १३६४ / ई० सन् १३०७ में “वैभारगिरिकल्प'' की रचना की। इस कल्प के अन्तर्गत उन्होंने वैभारगिरि, राजगृह और नालन्दा का वर्णन किया है और इन स्थानों से संबंधित जैन मान्यताओं की चर्चा की है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं___"वैभारपर्वत पर अनेक जड़ी-बूटियां, सुन्दर सुन्दर झरने, उष्ण
और शीतल जल के कुंड आदि विद्यमान हैं । सरस्वती नदी का उद्गम स्थल भी यहीं है । शालिभद्र धन्ना ऋषि ने इसी पर्वत की गर्म शिलाओं पर कायोत्सर्ग किया था। यहां अनेक चैत्य हैं, जिनमें महावीर की प्रतिमायें एवं अनेक खंडित प्रतिमायें विद्यमान हैं। यहां अनेक लौकिक तीर्थ तथा आसपास कई बौद्ध विहार भी हैं। यहां से कई बौद्ध भिक्षुओं ने निर्वाण प्राप्त किया है । यहां एक अंधेरी गुफा भी है जिसमें प्राचीन काल में रोहिण आदि चोर रहा करते थे। पहाड़ी की तलहटी में राजगृह नामक सुन्दर नगरी बसी हुई है। ऋषभपुर, क्षितिप्रतिष्ठ, चणकपुर, कुशाग्रपुर आदि इस नगरी के प्राचीन नाम हैं। यहां स्थित गुणशील चैत्य में भगवान् महावीर का समवसरण लगता था । इस नगरी से कुछ दूर स्थित नालन्दा नामक स्थान पर महावीर ने १४ वर्षावास व्यतीत १. विजयधर्मसूरि-प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, पृ० २६ २. लाहा, विमलाचरण-ज्योग्रॉफी ऑफ अर्ली बुद्धिज्म, पृ० ३१
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