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पूर्व भारत के जैन तीर्थ __ वर्तमान बिहार प्रदेश का उत्तरी भाग प्राचीन काल में विदेह जनपद के अन्तर्गत अवस्थित रहा । गुप्त काल से इसका नाम 'तीरभुक्ति' प्रचलित हुआ, जिसका अर्थ है 'वह प्रदेश जो नदियों के तट पर स्थित हो'। यही तीरभुक्ति जिनप्रभसूरि के समय तक तिरहुत नाम से प्रसिद्ध हुआ और आज भी यही नाम प्रचलित है । ग्रन्थकार ने यहाँ के निवासियों के संस्कृत-प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता होने तथा केले आदि की अधिक उपज होने, कुएं और वापियों के अधिक संख्या में होने का जो उल्लेख किया है, वह अस्वाभाविक नहीं लगता। जिनप्रभ ने इस नगरी का नाम 'जगई' जो उस समय प्रचलित था, उल्लेख किया है, परन्तु हमें अन्यत्र इस नाम की चर्चा नहीं मिलती। ____ मल्लिनाथ और नमिनाथ' के माता-पिता, जन्म आदि कल्याणकों के सम्बन्ध में जैन साहित्य में विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं।
कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने अपने ६ वर्षावास इसी नगरी १. योगेन्द्र मिश्र-'सिन्धुदेश ऑफ जैन लिटरेचर इज तीरमुक्ति'
'महावीर जैन विद्यालय सुवर्ण जयन्ती अंक' भाग-१ पृ० २२३ । २. [अ] ज्ञाताधर्मकथा, ६५; तीर्थोद्गारित, ५०८ [ब] मिहिलाए मल्लिजिणो पहवदिए कुंभअक्खिदीसेहिं । मग्गसिरसुक्कएक्कादसीए अस्सिणीए संजादो ॥
तिलोयपण्णत्ती ४१५४४ नमिश्च मल्लिमिथिलाप्रसूतौ ॥
वराङ्गचरित २७।८४ ३. [अ] समवायाङ्ग १५७ [ब] मिहिलापुरिए जादो विजयणरिदेण वप्पिलाए य । अस्सिणिरिक्खे आसाढ़ सुक्कदसमीए णमिसामी ॥
तिलोयपण्णत्ती ४।५४६ मिथिला विजयो वप्रा वकुलो नमिरश्विनी। नमयन्तु महामानं सम्मेदश्च महीधरः ।।
हरिवंशपराण ६०।२०२ ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समगे भगवं महावीरे अट्ठियगामं नीसाए...... ......। छ मिहिलाए ............... वासावासं उवागए।
कल्पसूत्र-१२२
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