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पूर्व भारत के जैन तीर्थं
अकाल सम्बन्धी जिस मान्यता का उल्लेख किया है, वह स्पष्ट नहीं होता । उन्होंने इस नगरी के एक मातृ देवी की भी चर्चा की है, जो संभवतः कोई स्थानीय देवी रही होगी ।
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इस नगरी का विद्या केन्द्र के रूप में भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा । यहाँ स्थान स्थान से विद्यार्थी अध्ययनार्थ आते रहते थे । जैन साहित्य में आर्यरक्षित के यहाँ आने की चर्चा मिलती है । ' जिनप्रभ ने भी इस बात का उल्लेख किया है । १८ विद्या, तंत्र-मंत्र, स्मृति-पुराण, रस विद्या, अंजन-गुटिका, पादप्रलेप आदि में निपुण लोगों के यहाँ बसने की ग्रन्थकार ने जो चर्चा की है, वह एक समृद्ध और विशाल नगरी के लिए अस्वाभाविक प्रतीत नहीं होती। इस नगरी के प्रसिद्ध कलाविद् मूलदेव, सार्थवाह अचल तथा गणिकारत्न देव - दत्ता, जिनकी जिनप्रभसूरि ने चर्चा की है, श्वेताम्बर जैन साहित्य में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है ।" इस नगरी की आर्थिक स्थिति के बारे में ग्रन्थकार ने जो उल्लेख किया है, यद्यपि वह अतिशयोक्तिपूर्ण है, परन्तु उससे यह स्पष्ट तो हो ही जाता है कि यह नगरी आर्थिक दृष्टि से भी बड़ी सम्पन्न थी । प्राचीन भारतवर्ष की राजधानी होने के कारण यह नगरी राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक तीनों दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही ।
पाटलिपुत्र आज पटना के नाम से प्रसिद्ध है । यह बिहार राज्य की राजधानी भी है । यहाँ दो श्वेताम्बर तथा पाँच दिगम्बर जिना - लय विद्यमान हैं, इसके अलावा यहां के गुलजारबाग नामक मुहल्ले में श्रेष्ठी सुदर्शन तथा आर्य स्थूलभद्र के भी स्मारक हैं ।
१. तंमि दसपुरे सोमदेवो माहणो, रुद्दसोमा भज्जा सड्ढी, तीसे जेट्ठपुत्तो रक्aितो बितियओ फग्गुरक्खियओ, तत्थ उप्पण्णगा अज्जरक्खिता, सोय तत्थं जं अत्थि पिउणो तं अज्झाइओ, घरे ण तीरति पढितुति ताहे गतो पाडलिपुत्तं, ************ | आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ४०१
२. मेहता और चन्द्रा - पूर्वोक्त, पृ० ४४६-४७
३. तीर्थदर्शन - प्रथम खंड, पृ० ४८-५१ ।
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