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उत्तर भारत के जैन तीर्थ
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शौरीपुर कुशावतं जनपद की राजधानी थी।" जैन परम्परानुसार " इस नगरी में श्रीकृष्ण और उनके चचेरे भाई नेमिनाथ का जन्म हुआ था । जैन साहित्य में इस नगरी का उल्लेख प्राप्त होता है । मध्ययुगीन श्वेताम्बर और दिगम्बर" ग्रन्थकारों ने भी इस नगरी का उल्लेख किया है । प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य अकबरप्रतिबोधक हीरविजयसूरि के आगमन के समय इस तीर्थ का जीर्णोद्धार कराया गया । यहाँ आस-पास के क्षेत्रों से मध्ययुगीन जैन प्रतिमायें भी मिली हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मध्य युग में यह स्थान तीर्थं के रूप में प्रसिद्ध रहा होगा । यहाँ श्वेताम्बरों और दिगम्बरों के अलगअलग मंदिर विद्यमान हैं । दिगम्बर मंदिर की प्रतिष्ठा वि०सं० १७२४ में भट्टारक विद्याभूषण द्वारा सम्पन्न की गई, यह बात उक्त मंदिर में उत्कीर्ण लेख से ज्ञात होती है । इन मन्दिरों में मध्ययुगीन और नवीन जिन प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं । "
१. प्रज्ञापनासूत्र - ३७;
सूत्रकृताङ्गवृत्ति (शीलाङ्क) पृ० १२३
२. [ अ ] कल्पसूत्र - १७१; तीर्थोदगारित - ५११;
ओघनियुक्ति-वृत्ति ( द्रोणाचार्य), पृ० ११९
[ब] सउरीपुरम्म जादो सिवदेवीए समुह विजएण । वसाहतेरसीए सिदा चित्तासु मिजिणो ॥
अरिष्टनेमिः किल शौर्य पुर्या
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तिलोयपण्णत्ती ४।५४७
वराङ्गचरित २७।८५
नेमिः सूर्यपुरं चित्रा समुद्रविजय: शिवा । ऊर्जयन्तो जयं तेऽमी मेषशृङ्गो दिशन्तु वः ॥
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हरिवंशपुराण ६०।२०३
३. मेहता और चन्द्रा – पूर्वोक्त, पृ० ८६९ ४. विजयधर्मसूरि - प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, पृ० ३८
५. जोहरापुरकर, विद्याधर - तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १७७
६. जैन, बलभद्र – भारतवर्ष के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग १, पृ० ७४-७६
७. वही, पृ० ७१ ।
८. वही, पृ० ७१ ७३; तीर्थदर्शन - प्रथम खंड, पृ० १२७-२९ ।
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