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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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यह स्थान कानपुर-आगरा रेलमार्ग पर स्थित शिकोहाबाद स्टेशन से १४ मील दूर 'बटेश्वर' नामक ग्राम के निकट स्थित है।'
१३. हस्तिनापुर-कल्प 'हस्तिनापुर' कुरु जनपद की राजधानी और प्राचीन भारतवर्ष की प्रमुख नगरियों में से एक थी। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन साहित्य में इस नगरी का विशद् विवरण मिलता है। जैन मान्यतानुसार यहाँ १६वें तीर्थङ्कर शान्तिनाथ, १७वें कुन्थुनाथ और १८वें अरनाथ का जन्म हुआ, इसीलिये यह नगरी एक जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस तीर्थ पर दो स्वतंत्र कल्प लिखे हैं, जिनमें इस तीर्थ के सम्बन्ध में जैन परम्परा में प्रचलित मान्यताओं की चर्चा है। उनके दोनों विवरणों-'हस्तिनापुरकल्प' और 'हस्तिनापुरतीर्थस्तव' में प्रायः समान बातों की चर्चा है, जो संक्षेप में इस प्रकार है___ "ऋषभदेव के १००पुत्रों में एक कुरु भी थे उन्हीं के नाम पर कुरुक्षेत्र बसाया गया। कूरु के पुत्र का नाम हस्तिन् था, जिसने हस्तिनापुर नामक नगर बसाया। इसी नगरी में बाहुबलि के पुत्र श्रेयांसनाथ ने ऋषभदेव को प्रथम पारणा कराया । शान्तिनाथ, कुन्थु. नाथ और अरनाथ, जो क्रमशः १६वें, १७वें और १८वें तीर्थङ्कर थे, के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक इसी नगरी में सम्पन्न हुए। सम्मेतशिखर से इन्होंने निर्वाण पाया। इनके पंच कल्याणकों की तिथियाँ इस प्रकार हैंच्यवन
भाद्रपद कृष्ण ७, भाद्रपद शुक्ल ९ और फाल्गुन शुक्ल २।
ज्येष्ठ कृष्ण १३, बैशाख कृष्ण १४ और मार्गशीर्ष शुक्ल १० । दीक्षा
ज्येष्ठ कृष्ण १४, वैशाख कृष्ण ५ और माघ शुक्ल ११ । १. जोहरापुरकर-पूर्वोक्त, पृ० १७७ ।
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