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जैन तीथों का ऐतिहासिक अध्ययन
१२३ जाती है। यहां राजा विशाल का गढ़ नामक एक टीले से अनेक प्राचीन अवशेष मिले हैं । इसी के समीप ही वसुकुंड नामक एक ग्राम है, जहाँ के निवासी परम्परा से एक स्थल को भगवान् की जन्मभूमि मानते आये है और उसपर कभी हल नहीं चलाया गया है। वैशाली से प्राप्त एक मुहर पर "वैशाली नाम कुण्डे"लिखा है। इन सब प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने इसी वसुकुंड को प्राचीन कुण्डग्राम और महावीर की सच्ची जन्मभूमि मानी है। जहाँ तक जिनप्रभसरि के उल्लेख का का प्रश्न है, यह कहा जा सकता है कि उन्होंने सहज ही कुंडग्राम का उल्लेख किया है और वहाँ महावीर के जिनालय होने की बात कही है, परन्तु उसकी भौगोलिक स्थिति के बारे में वे मौन हैं। कुण्डग्राम के नामोल्लेखमात्र के आधार पर यह कहना कठिन है कि १४वीं शती में प्राचीन और वास्तविक कुण्डग्राम की ही जन्मभूमि के रूप में मान्यता थी अथवा उसके स्थान पर नये कुण्डग्रामों की कल्पना कर ली गयी थी!
२. कोटिशिला तीर्थ दिगम्बर जैन परम्परानुमार कोटिशिला सिद्धक्षेत्र है। यहाँ से कई कोटि मुनि सिद्ध हुए हैं। जिनप्रभसूरि ने इस तीर्थ पर एक स्वतंत्र कल्प की रचना की है, जिसकी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
"भरत क्षेत्र के मगध देश में कोटिशिला स्थित है, जो आज भी चारण, सुर, असुर आदि द्वारा पूजित है। यह पर्वत १ योजन ऊंचा और इतना ही चौड़ा है। ९ वासूदेवों ने इसे उठाकर अपनी-अपनी शक्ति का परीक्षण किया था। प्रथम वासुदेव ने इसे छत्र रूप में धारण किया (उठाया), दूसरे ने मस्तक तक, तीसरे ने ग्रीवा तक, चौथे ने वक्षस्थल तक, पांचवें ने उदर तक, छठे ने कटिप्रदेश तक, सातवें ने जांघों तक, आठवें ने जानुपर्यन्त और नवें कृष्णवासुदेव ने उसे १ अंगुल उठाया। अवसर्पिणी काल के प्रभाव से मनुष्यों का बल कम हो जाता है, परन्तु तीर्थङ्करों का बल सदैव समान रहता है। ___ शान्सिनाथ के प्रथम गणधर चक्रायुध इसी पर्वत पर मुक्त हुए ये । शान्तिनाथ और कुन्थुनाथ के समय यहाँ १-१ कोटि मुनि सिद्ध १. जैन, हीरालाल, पूर्वोक्त, पृ० २४
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