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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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हैं, परन्तु उनसे इस तीर्थ की (तत्कालीन) स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। ___भागलपुर जिले में जिला मुख्यालय से ६ मील दूर गंगातट पर यह प्राचीन नगरी स्थित है और आज भी चम्पा के नाम से जानी है। यहां जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों के अलग-अलग जिनालय विद्यमान हैं, जो अर्वाचीन हैं।'
४. पाटलिपुत्रनगरकल्प पाटलिपुत्र प्राचीन भारतवर्ष की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नगरी थी। शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुग तथा गुप्त नरेशों ने इसे अपनी राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित किया था। ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन ग्रन्थों में इस नगरी के बारे में विस्तृत उल्लेख प्राप्त होता है। जिनप्रभसूरि ने इस नगरी से सम्बन्धित जन मान्यताओं की चर्चा की है जो संक्षेप में इस प्रकार है
"पूर्व काल में महाराज श्रेणिक के मृत्योपरान्त उनके पुत्र कुणिक (अजातशत्रु) ने चम्पा नगरी में अपनी राजधानी स्थापित की। कुणिक के पश्चात् उनका पुत्र उदायी गद्दी पर बैठा, उसने भी पितृशोक को दूर करने के लिए मन्त्रियों के अनुरोध पर गंगा के किनारे जहाँ पाटली नामक वक्ष उगे थे, पाटलिपुत्र नामक नगर बसाया। यहां उसने अनेक सुन्दर-सुन्दर भवनों, उद्यानों तथा एक जिनालय का निर्माण कराया और अपनी राजधानी भी चम्पा से यहीं स्थानान्तरित कर दी। [पाटली वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ग्रन्थकार ने पुष्पचला और अन्निकापुत्राचार्य की विस्तार से कथा दी है। एक दिन उदायी जिनालय में पूजन के लिए गया, जहाँ एक साधुवेशी हत्यारे ने उसे मार डाला। उदायी के पश्चात् मगध की सत्ता नापित-गणिका के पुत्र नन्द के हाथों में आ गयी। उसके वंश में कुल ९ राजा हुए । अन्तिम नन्द राजा के मन्त्री शकडाल जैन उपासक थे। उनके पुत्र स्थूलभद्र एक प्रसिद्ध जैनाचार्य हुए । अन्तिम नन्द राजा १. तीर्थदर्शन, खंड १, पृ० ५८-५९ ।
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