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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
१२७ भगवान् वासुपूज्य के पुत्र राजा मधव की पुत्री लक्ष्मी और उसकी कन्या रोहिणी के संबंध में ग्रन्थकार ने जिस कथानक की चर्चा की है, वह श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में प्राप्त नहीं होती। दिगम्बरीय परम्परा के आचार्य हरिषेण ( ई० सन् १०वीं शती ) द्वारा रचित 'बृहत्कथाकोष'' में चम्पा के राजा मधव और उनकी कन्या रोहिणी की कथा मिलती है। परन्तु वहां मधव को वासुपूज्य का पुत्र नहीं अपितु शिष्य बतलाया गया है। इसी प्रकार रोहिणी को मधव की पुत्री लक्ष्मी की कन्या नहीं वरन् मधव की ही कन्या बतलायी गयी है । अतः यह माना जा सकता है कि जिनप्रभ द्वारा उल्लिखित उपरोक्त कथानक का आधार बृहत्कथाकोष ही है । दिगम्बर परम्परा से अन्तर बनाये रखने के लिये ही उन्होंने उसमें उक्त परिवर्तन किया होगा। भगवान् महावीर के चम्पानगरी में वर्षावास का विवरण कल्पसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, उसकी चूर्णी, कल्पसूत्रवृत्ति (विनयविजय कृत) आदि ग्रन्थों में प्राप्त होता है। __ कलिंग का राजा करकण्डु, जिसने प्रत्येकबुद्ध का पद प्राप्त किया, के सम्बन्ध में उत्तराध्ययनसूत्र उसकी चूर्णी तथा आवश्यकचूर्णी आदि ग्रन्थों में विस्तृत कथानक प्राप्त होते हैं। जिनप्रभसूरि ने उनके बारे में प्रचलित कथानकों का अत्यन्त संक्षेप में उल्लेख किया है।
१. बृहत्कथाकोश 'अशोकरोहिणीकथानकम्' ५७।२०-२५ २. चंपं च पिट्टिचंप च नीसाए तओ अंतरावासे वासावासं उवागए ।
कल्पसूत्र-१२२ चंपा वासाबासं, जक्खिंदे साइदत्तपुच्छा य । वागरणदुहपएसण, पच्चक्खाणे अ दुविहे अ॥
आवश्यकनियुक्ति, सूत्र ५२४ ततो सामी णिग्गतो चंपं गतो, तत्थ वासावासं ठाति ।
आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० २८४ ३. करकण्डू कलिंगेसु.................।
उत्तराध्ययनसूत्र १८।४६ ४. उत्तराध्ययनचूर्णी, पृ० १७८ । ५. आवश्यकचूर्णी, उत्तर भाग, पृ० २०४-७
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