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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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जन का कोई उल्लेख नहीं मिलता, अतः यह विवरण अत्यन्त महत्त्व - पूर्ण माना जा सकता है । देववाराणसी के अन्तर्गत उन्होंने विश्वनाथ के मन्दिर की चर्चा की है और बताया है कि इस मन्दिर में चौबीस तीर्थङ्करों से युक्त एक पाषाणफलक रखा है। चतुरशीतिमहातीर्थनाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के मध्य में चन्द्रप्रभ की प्रतिमा होने का उल्लेख किया है ।" वाराणसी का वर्तमान विश्वनाथ मंदिर तो १८वीं शती में बना है । हो सकता है कि प्राचीन काशीविश्वनाथ मंदिर में जिनप्रतिमायुक्त कोई पाषाणखंड रहा हो । फिर भी एक ब्राह्मणीय परम्परा के मंदिर में जैन प्रतिमाओं का रखा जाना साधारणतया अस्वाभाविक ही प्रतीत होता है, किन्तु इसे असम्भव भी नहीं कहा जा सकता ।
राजधानीवाराणसी जहां यवनों के निवास करने का उल्लेख है, वर्तमान में अलईपुर के आसपास का क्षेत्र हो सकता है। यहां आज भी मुसलमानों की आबादी अधिक है । वाराणसी का वर्तमान मदन पुरा मुहल्ला ही मदनवाराणसी हो सकता है | विजयवाराणसी वर्तमान में छावनी ( कैन्टोनमेन्ट क्षेत्र) हो सकता है। चूँकि प्राचीन काल में शहर के बाहर विजयस्कन्धावार, जिसे छावनी भी कहा जाता था, स्थापित किये जाते रहे । इसी आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वाराणसी का वर्तमान कैन्ट क्षेत्र, जिसे छावनी भी कहते हैं, विजयवाराणसी हो सकता है ।
वाराणसी नगरी के अनेक तालाबों एवं दण्डखात नामक तालाब के निकट स्थित पार्श्वनाथ के मंदिर का उल्लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । आज भी इस नगरी में अनेक पक्के तालाब हैं । दण्डखात तालाब के निकट जो पार्श्वनाथ का मंदिर बतलाया गया है, उसे वर्तमान भेलूपुर मुहल्ले में स्थित पार्श्वनाथ मंदिर के ही स्थान पर मानना चाहिए । यहाँ मन्दिर के जीर्णोद्धार हेतु करायी जा रही खुदाई में भगवान् पार्श्वनाथ की एक भव्य एवं प्राचीन प्रतिमा तथा कुछ अन्य जैन प्रतिमायें तथा कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं । खुदाई करते समय असावधानी से पार्श्वनाथ की प्रतिमा खंडित हो गयी । प्राचीन भारतीय १. वाराणस्यां विश्वेश्वरमध्ये श्रीचन्द्रप्रभः । विविधतीर्थंकल्प, पृ० ८५ ।
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