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उत्तर भारत के जैन तीर्थ
वि० सं० ११५६ का है। द्वितीय ताम्रपत्र में चन्द्रावती स्थित चन्द्रमाधव के देवालय को सम्राट चन्द्रदेव द्वारा दिये गये भूमिदान का विस्तृत विवरण है।' इससे स्पष्ट है कि विक्रम की बारहवीं शती में चन्द्रावती में चन्द्रमाधव का एक प्रसिद्ध एवं महिम्न देवालय विद्य. मान था।
उपरोक्त ताम्रपत्रों के सम्पादन के संदर्भ में सन १९१२ में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से श्री दयाराम साहनी ने इस स्थान का सर्वेक्षण भी किया। उनके अनुसार यहां स्थित श्वेताम्बर जिनालय स्थानीय ग्रामवासियों में चन्द्रमाधो के मंदिर के नाम से जाना जाता था। साहनी ने इस मंदिर के उत्तरी दीवाल पर वि० सं० १७५६ का एक शिलालेख तथा मंदिर में वि०सं० १५६४ की भगवान् शांतिनाथ की एक प्रतिमा होने की बात कही है। आज यहां उक्त जिनालय में न तो सं० १७५६ का शिलालेख ही दिखाई देता है और संभवतः वह प्रतिमा भी वाराणसी में भेलूपुर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में स्थानान्तरित कर दी गयी है।
जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है जैन परम्परा में चन्द्रावती ( चन्द्रपुरी) की भौगोलिक अवस्थिति की चर्चा सर्वप्रथम कल्पप्रदीप में ही प्राप्त होती है। इस स्थान की अति प्राचीनता के सम्बन्ध में प्रमाणों के अभाव में तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किन्तु उक्त ताम्रपत्रों के विवरणों से यह स्पष्ट है कि १० वी-११ वीं शती में यह एक प्रसिद्ध स्थान था। संभवतः इसकी विश्रुति एवं नामसाम्य के आधार पर जैनों ने इसे आठवें तीर्थंकर के जन्मस्थान से समीकृत किया होगा और १४ वीं शती तक यहाँ चन्द्रप्रभ का एक जिनालय श्वी निर्मित हो चुका था, यह बात कल्पप्रदीप के विवरण से स्पष्ट है.। .
१. त: चंद्रावत्यां देवश्रीचंद्रमाधवाय पूजाद्यर्थ शासनोकृत्य प्रदत्त इति ।।
साहनी, पूर्वोक्त-इपिग्राफिया इंडिका, जिल्द XIV, पृ० १९९ २. वही, पृ० १९७ ३. वही
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