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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
६. प्रयाग
गंगा-यमुना के संगम पर अवस्थित प्रयाग वर्तमान इलाहाबाद ) हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है । ब्राह्मणीय परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों में यहाँ दो नदियों का संगम माना गया है, परन्तु उत्तरकालीन ग्रन्थों में यहाँ गंगा-यमुना और सरस्वती इन तीन नदियों के संगम स्थल की कल्पना की गयी है । रामायण तथा महाभारत में इस तीर्थं का उल्लेख मिलता है ।" बौद्ध साहित्य में भी इस नगरी का उल्लेख है, परन्तु वहाँ किसी बड़े नगर के रूप में इसकी चर्चा नहीं मिलती ।
ब्राह्मणीय और बौद्ध परम्परा के अतिरिक्त जैन परम्परा में भी इस नगरी का उल्लेख है । श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में इस नगरी के प्रयाग' नामकरण के सम्बन्ध में अलग-अलग कथान प्राप्त होते हैं ।
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आचार्य जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप में इस तीर्थ की उत्पत्ति का सविस्तार वर्णन करते हुए यहाँ ऋषभदेव और शीतलनाथ के चैत्यालय होने की बात कही है ।
कल्पप्रदीप में दो बार इस तीर्थ का उल्लेख आया है
प्रथम पाटलिपुत्रकल्प के अन्तर्गत जहाँ उन्होंने अन्निकापुत्राचार्य की कथा दी है और बतलाया है कि पुष्पभद्रपुर में एक बार गंगा नदी पार करते हुए अन्निकापुत्राचार्य ने कैवल्य प्राप्त किया और वहीं उनका निर्वाण भी हुआ, इसीलिये यह स्थान प्रयाग नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
द्वितीय चतुरशीतिमहातीर्थ नाम संग्रहकल्प के अन्तर्गत उन्होंने यहाँ ऋषभदेव और शीतलनाथ के चैत्यालय होने की बात कही है । अन्निकापुत्राचार्य की कथा हमें आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक
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१. लाहा, विमलाचरण - प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल,
पृ० १९८-२००
२. माथुर, विजयेन्द्र - ऐतिहासिकस्थानावली, पृ० ५८५-८७ ३. सूत्र ११९०-९१
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