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उत्तर भारत के जैन तीर्थ
यहां के राजा संजय के सम्बन्ध में जिनप्रभ ने जिस कथानक की चर्चा की है, वह उत्तराध्ययनसूत्रा' और उसकी चूर्णी में सविस्तार कही गयी है। इसी प्रकार उन्होंने गांगलिकुमार के सम्बन्ध में जो बात कही है, वह भी श्वेताम्बर जैन परम्परा पर आधारित है। इस नगरी के एक राजा दुमुह, जिसका जिनप्रभ ने उल्लेख किया है, के बारे में जैन ग्रंथों में सविस्तार विवरण प्राप्त होता है। जातकों में भी इस राजा का उल्लेख है और उसे मिथिला के अन्तिम शासक नमि का समकालीन बतलाया गया है। ऐतरेयब्राह्मण' में भी दुमुह को एक विजेता के रूप में उल्लिखित किया गया है और बृहदुक्थ को उसका धुरोहित बतलाया गया है। इस प्रकार मह का ब्राह्मणीय, बौद्ध और जैन तीनों परम्पराओं में उल्लेख हुआ है, अतः दुमुख एक ऐतिहासिक ब्यक्ति माना जा सकता है। द्रौपदी के सम्बन्ध में भी जैन साहित्य में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।'
जिनप्रभ ने इस नगरी के एक राजा धर्मरुचि और काशी के राजा नाम अज्ञात) सम्बन्धी जिस कथानक की चर्चा की है वह जैन साहित्य में अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता, अतः यह कहा जा सकता है १. उत्तराध्ययनसूत्र १८, उत्तराध्ययनचूर्णी पृ० २४८-४९ २. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ५२; उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति (शान्तिसूरि)
पृ० ३२१ और आगे ३. इतो य पंचालासु जणवदेसु, कंपिल्लं नगरं, तत्थ दुम्मुहो राया, सो ईद
केतु पासति लोगेण महिज्जंतं अणेगकुडभीसहस्सपरिमंडिताभिरामं, पुणो य विलुत्तं पडितं च मुत्तपुरीसाण मज्झ, सोवि संबुद्धो, जो इदकेतु सुयलंकियं तु०।
आवश्यकचूर्णी, उत्तरभाग, पृ० २०७ विस्तार के लिये द्रष्टव्य
मेहता और चन्द्रा-प्राकृतप्रापरनेम्स, भाग १, पृ० ३७९ ४. मलाल से कर, जी० पी०-डिक्सनरी ऑफ पालीप्रापरनेम्स, भाग १,
पृ० १०९८ ५. सूर्यकान्त–वैदिककोश, पृ २०३ ६. मेहना और चन्द्रा-पूर्वोक, भाग १, पृ० ३९०;
जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, भाग ३, पृ० ४६१
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