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विषयप्रवेश रत्नत्रय और आत्मामें स्वभावसे अभेद होनेके कारण साध्य और साधनमें भेद नहीं स्वीकार किया गया है। इसलिए परमार्थको सूचित करनेवाला होनेसे उक्त वचन अनुपचरित कथनका उदाहरण है। मोक्षके इच्छुक पुरुषके लिए निश्चयसे ज्ञायकस्वरूप एक आत्मा हो उपादेय है यह बतलाना इस कथनका मुख्य प्रयोजन है।
उपचरित कथन दो प्रकारका है-उपचरित सद्भूत कथन और उपचरित असद्भूत कथन ।
उपचरित सद्भूत कथनका उदाहरण-अनन्त पर्यायोंकी वर्तनाका हेतु होनेसे एक कालाणुको अनन्त कहना यह उपचरित सद्भूत कथनका उदाहरण है (तत्त्वार्थवा० ५-३९), क्योंकि एक कालाणुमें अनन्त पर्यायरूपसे परिणमनकी योग्यता होनेसे अथवा एक ही कालाणु क्रमसे अनन्त पर्यायरूपसे परिणमता है, इसलिए यहाँ एक कालाणुको अनन्त कहा गया है। यहाँ अनन्त पर्यायोंका कालाणुसे कथंचित् भेद होते हुए भी पर्यायोंको ही विशेषण बनाकर कालाणुको अनन्त कहा गया है। एक ही कालाणु क्रमसे अनन्त पर्यायरूपसे परिणमता है यह बतलाना इसका मुख्य प्रयोजन है।
उपचरित असद्भूत कथनका उदाहरण---शुभोपयोगरूप व्रत, शील और तप आदिको मोक्षमार्ग कहना यह उपचरित असद्भूत कथनका उदाहरण है। बृहद् द्रव्यसंग्रह (गा० ४५ टीका) यद्यपि शुभोपयोगरूप व्रत, शील और तप आदिमें यथार्थ मोक्षमार्गपना असद्भूत है। फिर भी बाह्य व्याप्तिवश उन्हे उपचारसे मोक्षमार्ग कहा गया है, इसलिए यह उपचरित असद्भूत कथनका उदाहरण है। यहाँ ज्ञायकस्वभाव आत्मा और उसमें उपयुक्त होनेसे जो स्वभाव पर्याय उत्पन्न होती है उन दोनोंसे शभोपयोगरूप व्रत, शील और तप आदि कथञ्चित् आश्रयभेद या आलम्बन भेद होनेके कारण भिन्न हैं (समयसार गा० १८१-१८३ आ० ख्या०, टी०), फिर भी प्रयोजनवश उन सबमें बुद्धिसे अभेद स्वीकार करके शुभोपयोगरूप | व्रत, शील और तप आदिमें मोक्षमार्गपना कल्पित किया गया है। बाह्म। व्याप्तिवश उपचरित मोक्षमार्ग निश्चय मोक्षमार्गकी प्रसिद्धि करता है यह बतलाना इस कथनका मुख्य प्रयोजन है।
असत्य कथनका उदाहरण-मन्द प्रकाशमें रज्जुको देखकर उसे सर्प कहना असत्य कथनका उदाहरण है, क्योंकि रज्जु यथार्थमें सर्प नहीं है, फिर भी सादृश्य सामान्यके कारण रज्जुमें 'यह सर्प है' ऐसा भ्रम हुआ
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